मान्यता, संस्कार या परंपरा – ये सब जड़त्व व यथास्थिति के पोषक हैं, जबकि शिक्षा से निकली वैज्ञानिक सोच गति का ईंधन है। जड़त्व और गति की तरह शिक्षा और संस्कार में भी निरंतर संघर्ष चलता रहता है जिसमें अंततः गति का जीतना ही जीवन है।और भीऔर भी

शिक्षा व ट्रेनिंग से किसी को अच्छा मैनेजर बनाया जा सकता है, अच्छा विश्लेषक व अच्छा वक्ता तक बनाया जा सकता है, पर अच्छा इंसान नहीं। अच्छा इंसान तो घर-परिवार के संस्कारों और निरंतर अपनी कतरब्योंत से ही बनता है।और भीऔर भी

इंसान का स्वभाव और कुत्ते की दुम एक बार आकार ले ले तो फिर उसे बदलना लगभग नामुमकिन होता है। इसलिए बालपन में ही अच्छे संस्कारों की नींव डालना जरूरी है। बाद में कुछ नहीं हो पाता।और भीऔर भी

जिस प्रकार ज्ञान विचारों और संस्कारों के रूप में आने वाली पीढ़ियों को प्रभावित करता है, उसी प्रकार अज्ञान भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी की विरासत बन जाता है। इसलिए अज्ञान को मिटाते रहना हमारा दायित्व है।और भीऔर भी

मन की करें तो अच्छा लगता है। लेकिन क्या अच्छा है क्या बुरा, यह मन नहीं जानता। मन तो ड्रग एडिक्ट का भी और भोजनभट्ट का भी। मन को संस्कारित करना पड़ता है। इसे छुट्टा छोड़ देना घातक है।और भीऔर भी