जख्मों पर मक्खियां और दिमाग में अनर्गल विचार तभी तक भिनभिनाते हैं, जब तक हम अचेत या अर्द्धनिद्रा की अवस्था में रहते हैं। जगते ही हमारा सचेत प्रतिरोध तंत्र सक्रिय हो जाता है तो घातक विचार व परजीवी भाग खड़े होते हैं।और भीऔर भी

हमें हर काम को रूटीन नहीं, एकदम नया समझकर करना चाहिए ताकि दिमाग पूरी तरह उसमें रम जाए। यह नहीं कि यंत्रवत साइकिल चलाए जा रहे हैं और दिमाग का सचेत हिस्सा सोया पड़ा हुआ है।और भीऔर भी

कर्ता बाहर का नहीं, अंदर का ही कोई जीव-अजीव है। संतुलन हासिल करने के क्रम में सचेत-अचेत कर्म ही हर घटना के कारक हैं। बाकी सब समझने की सुविधा के लिए हम जैसे इंसानों द्वारा गढ़े गए पुतले हैं।और भीऔर भी