नए साल के बजट में तमाम टैक्सों में घटबढ़ हो सकती है। टैक्स का आधार बढ़ाने की कोशिश भी हो सकती है। लेकिन एक बात तय है कि वित्त मंत्री पलनियप्पन चिदंबरम किसानों या कृषि आय पर कोई टैक्स नहीं लगाएंगे। वैसे, बीजेपी की तरफ से अगर यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बने होते तो वे भी यह जोखिम नहीं उठाते। फिर भी टैक्स आधार बढ़ाने की बड़ी-बड़ी बातों से कोई भी वित्त मंत्री बाज़ नहीं आता। दिक्कतऔरऔर भी

बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी

अभी तक रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव अपनी अघोषित जिद पर अड़े हुए थे कि जब तक केंद्र सरकार राजकोषीय मोर्चे पर कुछ नहीं करती या दूसरे शब्दों में अपने खजाने का बंदोबस्त दुरुस्त नहीं करती, तब तक वे मौद्रिक मोर्चे पर ढील नहीं देंगे। यही वजह है कि पिछले दो सालों में 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बाद रिजर्व बैंक ने इस साल अप्रैल में इसमें एकबारगी आधा फीसदी कमी करके फिर हाथ बांधऔरऔर भी

पेट्रोल के बाद सरकार अब डीज़ल के मूल्यों से भी नियंत्रण खत्म करने जा रही है। वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने मंगलवार को राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया, “सरकार सैद्धांतिक रूप से डीज़ल की कीमतों से नियंत्रण को हटाने के लिए तैयार है। लेकिन इस तरह का कोई भी प्रस्ताव रसोई गैस के लिए विचाराधीन नहीं है।” मालूम हो कि सरकार ने जून 2010 से ही पेट्रोल को बाजार शक्तियों के हवाले करऔरऔर भी

दुनिया की सन्नामी रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) ने कहा है कि भारत का आम बजट उसकी रेटिंग (BBB-/Stable/A-3) पर थोड़ा नकारात्मक असर डाल सकता है। उसका कहना है कि वित्त मंत्री ने खजाने की व्यवस्था के संबंधित तमाम सुधार घोषित किए हैं, लेकिन माल व सेवा कर (जीएसटी), प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) औप सब्सिडी सीधे लक्ष्य तक पहुंचाने जैसे अहम सुधारों के अमल के वक्त को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। साथ ही भारतऔरऔर भी

यह बजट किसके लिए है? आम के लिए, खास के लिए या बाजार के लिए! अगर प्रतिक्रियाओं के लिहाज से देखा जाए तो इनमें से किसी के लिए भी नहीं। आम आदमी परेशान हैं कि उसे बमुश्किल से मुद्रास्फीति की मार के बराबर कर रियायत मिली है। खास लोगों को कहना था कि वित्त मंत्री को राजकोषीय मजबूती के लिए जो ठोस उपाय करने थे, वैसा कोई भी साहसिक कदम उन्होंने नहीं उठाया है। उन्होंने दस मेंऔरऔर भी

चुनाव न होते तो बजट का रहस्य 16 दिन पहले ही खुल जाता। चलिए, इससे वित्त मंत्री और उनके अमले को अपने प्रस्तावों को ठोंक-बजाकर दुरुस्त करने के लिए ज्यादा वक्त मिल गया। लेकिन हम तो उन्हीं के भरोसे हैं तो हमें क्या वक्त मिलना और क्या न मिलना! इतना तय है कि बजट की एक-एक लाइन किसी न किसी रूप में कंपनियों के धंधे पर असर डालती है और इसका सीधा असर उनके शेयरों पर पड़ेगा।औरऔर भी

घटती विकास दर की हकीकत और आगे बढ़ जाने की उम्मीद के बाद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी देश का 81वां आम बजट शुक्रवार को संसद में पेश कर रहे हैं। आम नौकरीपेशा लोगों को उम्मीद है कि आयकर छूट की सीमा 1.80 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपए की जा सकती है तो कॉरपोरेट क्षेत्र को लगता है कि एक्साइज ड्यूटी को 10 से 12 करके उनको पहले दी गई राहत वापस ले ली जाएगी। वहीं अर्थशास्त्रीऔरऔर भी

किसानों की शिकायत थी कि पिछले साल उर्वरकों, खासकर डीएपी (डाई अमोनियम फॉस्फेट) और एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) के दाम बहुत बढ़ गए थे। लिहाजा इस बार इन्हें कम किया जाना चाहिए। लेकिन सरकार ने उनकी मांग से उलट दोनों ही उर्वरकों पर सब्सिडी घटा दी है जिनसे इनके दाम इस साल बढ़ जाएंगे। डीएपी पर सब्सिडी 27.4 फीसदी और एमओपी पर 10.1 फीसदी कम की गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को अपनी बैठक में तयऔरऔर भी