इंद्रियां हैं, हार्मोंस हैं, तभी जीवन है। नहीं तो मर गए समझो। मेलमिलाप, सुख-दुख इन्हीं से तो है। कोई इंद्रजीत नहीं। संत नहीं, ढोंगी हैं। हां, दुनिया-समाज को समझने के लिए अपने से बाहर निकलना पड़ता है जिसके लिए इंद्रियों का शमन करना पड़ता है।और भीऔर भी

सुखी वही है जिसकी दृष्टि सम्यक है, जो स्थिरता के साथ गति को भी देखता है, जो वर्तमान के साथ-साथ उसके भीतर पनपते भविष्य को समझने का माद्दा रखता है, जो अतीत के मोह में चिपक कर वर्तमान व भविष्य के प्रति शंकालु नहीं रहता।और भीऔर भी

जिंदगी में हमेशा बच्चे रहे। जुबान के हमेशा कच्चे रहे। सोच में हमेशा लुच्चे रहे। हर किसी को अपने आगे टुच्चा समझते रहे। ऐसे में दुनिया क्या खाक सधेगी? अपने में ही डूबे रहे और जमाने को देखा-भाला नहीं तो वह भाव दे भी तो भला कैसे!और भीऔर भी

अपने को जानने का मतलब है अपने शरीर, मन और इस दुनिया-जहान की संरचना को जानना, इनकी मूल प्रकृति व अंतर्संबंधों को समझना। आज आंखें मूंदकर अपने को जानने की कसरत बेमतलब है।और भीऔर भी

हम सभी भीतर चुम्बक लिए घूमते हैं। एकतरफा हाथ बढ़ाकर हमें किसी से जुड़ने की नहीं, बल्कि आपस की इस चुम्बकीय शक्ति को समझने की जरूरत है। एक चुम्बक दूसरे चुम्बक को खींचता ही है।और भीऔर भी

जमाना हम से है, हम जमाने से नहीं – जैसी बातें मुंह फुलाकर हनुमान बनने से ज्यादा कुछ नहीं। जमाना हमारे बगैर भी चलता है और चलता रहेगा। हमें जमाने को समझने की जरूरत है, न कि जमाने को हमें।और भीऔर भी