बाजार की उम्मीद और अटकलें खोखली निकलीं। रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने ब्याज दरों में कोई तब्दीली नहीं की है। बल्कि, जिसकी उम्मीद नहीं थी और कहा जा रहा था कि सिस्टम में तरलता की कोई कमी नहीं है, मुक्त नकदी पर्याप्त है, वही काम उन्होंने कर दिया। सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) को 4.75 फीसदी से घटाकर 4.50 फीसदी कर दिया है। यह फैसला इस हफ्ते शनिवार, 22 सितंबर 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े सेऔरऔर भी

हर कोई यही उम्मीद कर रहा था कि रिजर्व बैंक रेपो दर में बहुत हुआ तो 0.25 फीसदी कमी कर सकता है। लेकिन रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2012-13 की सालाना मौद्रिक नीति में रेपो दर में 50 आधार अंक या 0.50 फीसटी कटौती कर सबको चौंका दिया है। नतीजतन घोषणा होते ही खटाक से चार मिनट के भीतर शेयर बाजार की प्रतिक्रिया को दर्शानेवाले सेंसेक्स और निफ्टी दिन के शिखर पर पहुंच गए। रिजर्व बैंक नेऔरऔर भी

बड़ी जटिल सोच और संरचना है बाज़ार की। औदयोगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के फरवरी के आंकड़े तो खराब ही रहे। मात्र 4.1 फीसदी औद्योगिक उत्पादन बढ़ा है फरवरी में। लेकिन इससे भी बड़ा सदमा यह था कि जनवरी में आईआईपी में 6.8 फीसदी बढ़त के जिस आंकड़े को लेकर खुशियां मनाई गई थीं, वह झूठा निकला। अब सीएसओ (केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय) का कहना है कि चीनी उद्योग ने जनवरी के बजाय नवंबर से जनवरी तक के आंकड़ेऔरऔर भी

माहौल जब देश के सबसे अहम सालाना दस्तावेज, बजट के आने का हो, तब खुद को किसी स्टॉक विशेष की चर्चा तक सीमित रखना ठीक नहीं लगता। वैसे भी सिर्फ शेयर या इक्विटी ही निवेश का इकलौता माध्यम नहीं है। आम लोग भी कहां शेयर बाजार में धन लगा रहे हैं! वित्तीय बाजार में उनके पसंदीदा माध्यम हैं निश्चित आय देनेवाले प्रपत्र। मुख्य रूप से एफडी। बांडों में निवेश का मौका मिले तो लोग कतई नहीं चूकते।औरऔर भी

बचत को लगाने का सबसे जोखिम भरा ठिकाना है शेयर बाजार तो वहां से सबसे ज्यादा रिटर्न भी मिलने की संभावना होती है। लेकिन धन डूबकर रसातल में भी जा सकता है। इसलिए कोई भी अपनी सारी बचत शेयर बाजार में नहीं लगाता। दो-तीन महीने की जरूरत भर का कैश अलग रखकर बाकी धन बैंक एफडी से लेकर सोना व प्रॉपर्टी जैसे अपेक्षाकृत सुरक्षित माध्यमों में भी लगाता है। लेकिन निवेश का एक और विकल्प है जिसऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने मौद्रिक की तीसरी त्रैमासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रखा है, लेकिन नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को आधा फीसदी घटाकर 6 से 5.5 फीसदी कर दिया है। दूसरे शब्दों में बैंकों को अब अपनी कुल जमा का 6 फीसदी नहीं, बल्कि 5.5 फीसदी हिस्सा ही रिजर्व बैंक के पास रखना होगा। यह फैसला 28 जनवरी 2012 से शुरू हो रहे पखवाड़े से लागू हो जाएगा। ध्यान दें कि सीआरआर में आधाऔरऔर भी

वित्‍त मंत्रालय ने साफ किया है कि भले ही लघु बचत स्कीमों की ब्‍याज दर को हर साल समतुल्य परिपक्‍वता वाली सरकारी प्रतिभूतियों के साथ जोड़ दिया गया है, लेकिन पीपीएफ (पब्लिक प्रॉविडेंट फंड) को छोड़कर बाकी सभी स्कीमों में निवेश पर ब्याज दरें फिक्‍स रहेंगी, फ्लोटिंग नहीं। सरकारी प्रतिभूतियों की ब्याज दर को बस एक संदर्भ के रूप में लिया जाएगा। असल में मीडिया में इस तरह की खबरें आई थीं कि पहली दिसम्‍बर 2011 सेऔरऔर भी

केंद्र सरकार चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में बाजार से 2.20 लाख करोड़ रुपए उधार जुटाएगी। यह बजट में तय की गई रकम से 52,872 करोड़ रुपए ज्यादा है। सरकार के इस फैसने ने बांड बाजार में सिहरन दौड़ा दी है और माना जा रहा है कि इससे निजी क्षेत्र के लिए वित्तीय संसाधन कम पड़ जाएंगे। सरकार का कहना है कि लघु बचत से कम रकम मिलने और केंद्र का कैश बैलेंस कम होने केऔरऔर भी

बैंकों के लिए अपनी जमा का इतना बड़ा हिस्सा सरकारी बांडों में लगाना क्यों जरूरी है? यह मुद्दा उछाल दिया है खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव ने। उन्होंने मंगलवार को मुंबई में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड के एक समारोह में कहा कि बैंकों द्वारा सरकारी बांडों में निवेश करने के लिए तय न्यूनतम जमा का अनिवार्य अनुपात धीरे-धीरे कम किया जाना चाहिए। जानकारों को लगता है कि ऐसा हो गया तो बाजार में सरकारीऔरऔर भी