जिस तरह कोयल के अंडे को कौआ अपना समझकर सेता रहता है। उसी तरह हम दूसरों की चिंताओं को अपने सिर ओढ़ लेते हैं। सरकार से लेकर प्रभुवर्ग अपनी चिंताओं को सबकी चिंताएं बनाकर पेश कर देते हैं और हम भी मर्सिया गाने लगते हैं।और भीऔर भी

सही ज्ञान, विज्ञान और दर्शन के बिना हम इस दुनिया में आंखें रहते हुए भी अंधों की तरह विचरते हैं। अंदाज सही लग गया तो तीर, नहीं तो तुक्का। चोट सिर में लगती है और मरहम घुटनों में लगाते हैं।और भीऔर भी

हर कोई सिर नीचे गाढ़कर चरे जा रहा है। जाल-जंजाल इतने कि जानी-पहचानी चीजों के अलावा और कुछ जानने की फुरसत नहीं। ऐसे में काम की चीज भी लोगों को भोंपू बजाकर सुनानी पड़ती है।और भीऔर भी

हम सभी ब्रह्म हैं। एक से अनेक होने, एक को अनेक करने की कोशिश करते हैं। नहीं कर पाते तो सिर धुनते हैं। नहीं भान कि दूसरों को मान दिए बिना, दूसरों का साथ लिए बिना अनेक नहीं हो सकते।और भीऔर भी