जो ठहरा वो मरा। जो चलता रहा, वही ज़िंदा है। सदियों पहले बुद्ध ने जीवन में निरतंर परिवर्तन की कुछ ऐसी ही बात कही थी। जो व्यक्ति या संस्थान समय के हिसाब से बदल नहीं पाता, वो खत्म हो जाता है। लेकिन ‘अर्थकाम’ ने तो न मिटने की कसम खा रखी है तो बनने से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें, झंझावात देखे। मगर, हर बार वित्तीय साक्षरता और आर्थिक सबलता के अधूरे मिशन कोऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग या निवेश के लिए डीमैट एकाउंट का होना ज़रूरी है और अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में कुल लगभग 2.11 करोड़ डीमैट एकाउंट हैं। इसका एक फीसदी भी पकड़ें तो हर दिन करीब दो लाख लोग ट्रेडिंग या निवेश करते होंगे। लेकिन इनमें से बमुश्किल दो हज़ार ही होंगे जो बाकायदा सोच-समझ कर धन लगाते या निकालते हैं। बाकी ज्यादातर लोग यहां अनाड़ियों की तरह मुंह उठाए चले जाते हैं। वैसेऔरऔर भी

जीवन सतत सीखने का नाम है। हम वही, दुनिया भी वही। लेकिन दृष्टि की सीमा है तो बार-बार लगातार खुद को खोजना पड़ता है। बाहर-भीतर गोता लगाना पड़ता है, तभी मिलते हैं मोती। जो ऐसा नहीं करता, वक्त की खाईं में खो जाता है। पहले मोबाइल बाज़ार में नोकिया का हिस्सा 70% था। सैमसंग और एप्पल बढ़ते गए और नोकिया उनसे पार नहीं पा सका तो उसका हिस्सा 40% से नीचे आ चुका है। देखते हैं बीताऔरऔर भी

अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनना आसान है। लेकिन अपने बारे में खबर लिखना बहुत मुश्किल है। खबर तो दूसरों को आपके बारे में लिखनी चाहिए। लेकिन आज की अगड़म-बगड़म और शोर-शराबे में खबर लिखनेवाले इतने उलझे हैं कि वे ज्यादा मिर्च, ज्यादा नमक और ज्यादा चीनी खाकर बेस्वाद हो चुकी जीभ को तर करनेवालों को भी मात देने लगे हैं। इसलिए अपनी खबर आप तक पहुंचाना मेरा फर्ज और मजबूरी दोनों बन जाता है। वैसे, भी आजऔरऔर भी

हिंदी समाज को वित्तीय रूप से साक्षर बनाने की मुहिम के साथ शुरू हुई आपकी इस वेबसाइट ने छह महीने बीतते-बीतते ही अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है है। अर्थकाम को देश में नए बिजनेस के सर्वोत्तम 74 ‘पावर ऑफ आइडियाज’ में चुन लिया गया है। ‘पावर ऑफ आइडियाज’ प्रतियोगिता का आयोजन इकनॉमिक टाइम्स, आईआईएम अहमदाबाद और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तरफ से किया जाता है। इसमें अंतिम रूप से जीतनेवाले आइडिया को आगे बढ़ानेऔरऔर भी

हफ्ते भर में कभी फुरसत ही नहीं मिलती कि आपसे कोई सीधी बात हो सके। तीन महीने बीत गए, चौथा बीतने जा रहा है। देखिए, एक बात तो तय मानिए कि हमारा रिश्ता लंबा होने जा रहा है। अर्थकाम को धीरे-धीरे ऐसा बना देना है कि वह हमारी-आपकी दुनिया की देखभाल में सक्षम हो जाए। मेरे एक अभिन्न मित्र ने शुरुआत के वक्त कहा कि चलिए आप अर्थ-काम देखिए, हम धर्म-मोक्ष संभाल लेते हैं। बात मुझे अचानकऔरऔर भी