मान्यता, संस्कार या परंपरा – ये सब जड़त्व व यथास्थिति के पोषक हैं, जबकि शिक्षा से निकली वैज्ञानिक सोच गति का ईंधन है। जड़त्व और गति की तरह शिक्षा और संस्कार में भी निरंतर संघर्ष चलता रहता है जिसमें अंततः गति का जीतना ही जीवन है।और भीऔर भी

हम सब अपने ही नाथ हैं। खुद ही सब करना या पाना है। कहते हैं कि भगवान सभी का नाथ है। लेकिन भगवान तो महज एक मान्यता है। मन का धन है। अन्यथा तो हम सभी अनाथ हैं। कहा भी गया है कि मानिए तो शंकर हैं, कंकर हैं अन्यथा।और भीऔर भी