एक इंसान की भावनाएं, उसका मनोविज्ञान पढ़ना बहुत मुश्किल नहीं। लेकिन जहां लाखों लोगों की भावनाएं जुड़ी हों, वो भी दया, माया या करुणा जैसे आदर्श नहीं, बल्कि धन जैसे ठोस स्वार्थ से जुड़ी हों, जहां देशी ही नहीं, विदेशी निवेशक तक शामिल हों, वहां समूह के मनोविज्ञान को पढ़ना बहुत मुश्किल है। फिर भी हम बाज़ार में इन्हें कैंडलस्टिक से पढ़ते हैं और यह रिवाज़ करीब 300 साल पुराना है। अब पढ़ते हैं शुक्र का भाव…औरऔर भी

राकेश झुनझुनवाला ने कुछ हफ्ते पहले बोला कि भारतीय शेयर बाज़ार में तेज़ी का ऐसा लंबा दौर आ रहा है जैसा अमेरिका में 1982 से 2000 तक चला था। लेकिन तब अमेरिका में बिजनेस का बेहद माकूल माहौल था। वहीं भारत अभी बिजनेस करने की आसानी में दुनिया के 189 देशों में 134वें, बिजनेस शुरू करने में 179वें और कांट्रैक्ट लागू करने में 186वें नंबर पर है। बिजनेस नहीं तो बाज़ार कैसे बढ़ेगा? अब मंगलवार की धार…औरऔर भी

अगर आप ट्रेडिंग के लिए खुद को स्विच-ऑन या स्विच-ऑफ नहीं कर सकते, किसी दिन ट्रेडिंग न करने पर आप परेशान हो उठते हैं तो आप ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिस-ऑर्डर का शिकार हैं। मनोविज्ञान में इसे एक तरह का रोग माना गया है। पहले स्वसाधना से खुद को इस रोग से मुक्त करें। तभी जाकर ट्रेड करें। अन्यथा यह रोग आपके एडिक्शन पर सवार होकर आपके तन मन धन सभी को तोड़ डालेगा। अब मार्च की अंतिम ट्रेडिंग…औरऔर भी