देश में बेरोज़गारों की संख्या बहुत है। छिपी हुई बेरोज़गारी उससे भी ज्यादा है। श्रमशक्ति की भागीदारी बहुत कम है। महिला श्रमशक्ति की भागादारी तो बेहद कम है। जीडीपी में कृषि का हिस्सा महज 14% है, लेकिन देश का तकरीबन 50% रोज़गार उसी में मिला हुआ है। जब तक कृषि से निकालकर लोगों को उद्योग-धंधों में नहीं लगाया जाएगा, तब तक हमारी अर्थव्यवस्था का विकास इतना नहीं हो सकता कि हम 2047 तक विकसित देश बन जाएं।औरऔर भी

हमारे देश भारतवर्ष की स्थिति पिछले दस सालों में मोदीराज के दौरान बड़ी विचित्र होती गई है। अनंत अंबानी के शादी-पूर्व जश्न में विदेशी हस्तियों व सितारे थिरकने पहुंच जाते हैं। जामनगर हवाई अड्डे को अंतरराष्ट्रीय दर्जा दे दिया जाता है और खुद भारतीय वायुसेना इस निजी समारोह के लिए पांच दिन में 600 से ज्यादा उड़ानों का इंतज़ाम देखती है। ठेले-खोमचे वाले तो छोड़िए, भिखारी तक भीख के लिए क्यूआर कोड दिखा देते हैं। मार्क ज़ुकेरबर्गऔरऔर भी

आईएमएफ का आकलन है कि भारत साल 2030 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। साल 2027 में ही भारत का जीडीपी 5.43 ट्रिलियन डॉलर हो सकता है, जबकि जर्मनी 5.33 ट्रिलियन और जापान 4.57 ट्रिलियन डॉलर के साथ उससे पीछे चले जाएंगे। उधर, आईएमएफ का यह आकलन आया और इधर हर होनेवाली चीज़ का श्रेय लेने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अपने तीसरे कार्यकाल की गारंटी घोषित कर दिया। लेकिन एक अन्य अंतरराष्ट्रीयऔरऔर भी

सबसे ऊपर भोग व लिप्सा में डूबी सत्ता का अहंकार। उसके नीचे ईडी, सीबीआई व इनकम टैक्स के हमलों से हलकान विपक्ष की चीत्कार। उससे नीचे उन्माद में डूबे अंधभक्तों की जयकार। मंझधार में छोटी होती जा रही चादर में समाने के लिए पैर व पेट काटते आत्मलीन लोगों की डकार। और, सबसे नीचे बेरोज़गारी व महंगाई से त्रस्त जनता की हाहाकार। यही है आज विकास की ख्वाहिश में दौड़ते हमारे समाज का मौजूदा पिरामिड। चार दिनऔरऔर भी

ज्यों-ज्यों चुनावों का सूरज चढ़ता जा रहा है, झूठ व सब्ज़बाग की तपिश बढ़ती ही जा रही है। और, यह कोई दूसरा नहीं, बल्कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कर रहे हैं। काश! गरीबी घटाने से लेकर भ्रष्टाचार मिटाने और जन-जन की सेवा करने की उनकी बातों में थोड़ा भी सच होता तो लगता कि प्रचारक है तो प्रचार करना उसकी आदत है। लेकिन यहां तो प्रचार के शोर के पीछे राई भर भी सच खोजने परऔरऔर भी

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका से उत्साहित करनेवाली आर्थिक खबरें आ रही हैं। फिर भी माहौल में अजब किस्म की पस्ती है। भारत के साथ इसका उल्टा है। यहां आर्थिक खबरों में कोई खास उत्साह नहीं। मोदी सरकार के दस साल में जीडीपी 5.9% सालाना की दर से बढ़ा है, जबकि मनमोहन सिंह के दस साल में जीडीपी इससे ज्यादा 6.8% सालाना की दर से बढ़ा था। मगर माहौल ऐसा बना दिया गया है कि जैसेऔरऔर भी

यह कैसी विडम्बना है कि शेयर बाज़ार हमारा, लेकिन कमाकर ले जा रहे हैं विदेशी। यकीनन, बाज़ार में तेज़ी की एक खास वजह है कि देश में आ रहा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई)। लेकिन उनका लगाया धन बढ़ रहा है आम भारतीय निवेशकों के धन से, जो सीधे-सीधे रिटेल निवेश व ट्रेडिंग के साथ ही परोक्ष रूप से बाज़ार में म्यूचुअल फडों व बीमा कंपनियों के ज़रिए आ रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में रिसर्च फर्मऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूर की कौड़ी फेंकने में उस्ताद हैं। उनकी यह प्रतिभा चुनावों के मौजूदा मौसम में कुछ ज्यादा ही सिर चढ़कर बोल रही है। 23 बाद 2047 में भारत को विकसित देश बनाने की कौड़ी क्या कम थी जो राजस्थान के चुरु और उत्तर प्रदेश के सहारनरपुर जैसी छोटी जगहों की चुनावी रैलियों में जनता को हांक रहे हैं कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को दस साल में जिस ऊंचाई पर ले गए हैं, उसकीऔरऔर भी

पढ़-लिखकर काम-धंधा पाने की हमारे नौजवानों की सहज व वाजिब ख्वाहिश मिट्टी में मिलती जा रही है। सबसे ज्यादा बेरोज़ागर वे युवा हैं जो ग्रेजुएट है। इसमें भी लड़कियों का हिस्सा लड़कों से लगभग पांच गुना है। यह स्थिति तब है, जब हमारी श्रमशक्ति का करीब 90% हिस्सा आज भी असंगठित क्षेत्र में है या स्वरोजगार में लगा है जहां किसी तरह की कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। दिक्कत यह है कि सरकार इसका कोई ठोस उपा करनेऔरऔर भी

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन का यह मानना बेहद खतरनाक है कि सरकार बेरोज़गारी जैसी समस्या नहीं सुलझा सकती। अगर यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के किसी अन्य बड़े नेता ने कही होती तो राजनीतिक तूफान मच गया होता। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो नागेश्वरन के बयान के बाद कह ही दिया कि भाजपा को कुर्सी खाली कर देनी चाहिए, कांग्रेस के पास बेरोज़गारी के मसले को सुलझाने की ठोस योजना हैऔरऔर भी