ट्रेडिंग तो हर कोई पैसे बनाने के लिए करता है। लेकिन कुछ लोगों का ज्यादा ध्यान इस बात रहता है कि बाज़ार की चालढाल को अच्छी तरह समझकर बेहतर ट्रेडर कैसे बना जाए। वे दूसरों से मिली हर टिप या जानकारी को खुद परखते हैं और अपने व्यक्तित्व के अनुरूप ट्रेडिंग सिस्टम विकसित करते हैं। घाटा खाने पर सिर नहीं धुनते, बल्कि इसकी वजह समझकर कमियां दूर करते हैं। अब बढ़ते हैं मंगलवार की ट्रेडिंग की ओर…औरऔर भी

हम सभी व्यक्तिगत ट्रेडर हैं। शेयर बाज़ार के घराती नहीं, बराती हैं। हम खुद कुछ नहीं बनाते। दूसरों के बनाए पर खेलते हैं। इन दूसरों में 9275 ब्रोकर, 51707 सब ब्रोकर, 1709 विदेशी संस्थागत निवेशक व उनके 6391 सब एकाउंट, 50 म्यूचुअल फंड, 207 वेंचर कैपिटल फंड और बीसियों बैंकों के साथ हज़ारों प्रोफेशनल ट्रेडर व एचएनआई शामिल हैं। इन सभी की मौजूदगी को ध्यान में रखते हुए ही हमें ट्रेडिंग करनी चाहिए। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

बाज़ार सबके लिए एक है। स्टॉक्स की लिस्ट और उनसे बने सूचकांक सबके लिए एक हैं। लेकिन हर दिन वहां से कुछ लोग रोते हुए निकलते हैं तो कुछ खिलखिलाते हुए। जाहिर है कि हर ट्रेडर की गति उसकी व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर है, न कि बाज़ार की वस्तुगत स्थिति पर क्योंकि उठना-गिरना तो बाज़ार का शाश्वत स्वभाव है। इसलिए कुछ जानकार लोग कहते हैं कि ट्रेडिंग खुद को खोजने जैसा काम है। अब खोज गुरुवार की…औरऔर भी

दुनिया तो गोल थी ही। बाज़ार भी अब ग्लोबल हो चला है। पुतिन द्वारा युद्ध की घोषणा से यूक्रेन में लामबंदी। चीन में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन घटकर आठ माह के न्यूनतम स्तर पर। ऐसे तमाम घटनाक्रम भारतीय शेयर बाज़ार के लिए उतनी ही अहमियत रखते हैं जितनी दिसंबर तिमाही में आर्थिक विकास दर का घटकर 4.7% पर आ जाना। कोई कितनी खबरों के पीछे भागे! इसलिए भाव देखो, भावों का चार्ट देखो। अब वार मंगल का…औरऔर भी

रिटेल निवेशक और ट्रेडर अगर आज बाज़ार से गायब हो चुके हैं तो इसकी वजह बड़ी साफ है। एक अध्ययन के मुताबिक 2008 से 2013 तक के पांच सालों में गलत प्रबंधन के चलते रिलायंस इडस्ट्रीज़ ने शेयरधारको की दौलत में दो लाख करोड़, एनटीपीसी व एयरटेल ने अलग-अलग 1.2 लाख करोड़, डीएलएफ ने 1.1 लाख करोड़ और आरकॉम ने एक लाख करोड़ रुपए का फटका लगाया है। इस सच के बीच पकड़ते हैं गुरु की चाल…औरऔर भी

शेयरों के भाव और कंपनी नतीजों में क्या आज और अभी का सीधा संबंध है? अगर होता तो कल पंद्रह तिमाहियों के बाद पहली बार शुद्ध लाभ में बढ़ोतरी, वो भी शानदार 115% की, हासिल करने के बावजूद भारती एयरटेल का शेयर 1.52% गिर नहीं गया होता! यहीं काम करती हैं उम्मीदें। एयरटेल इसलिए गिरा क्योंकि उससे ज्यादा शुद्ध लाभ की उम्मीद थी और जनवरी में दिसंबर तक की उम्मीद हवाई नहीं होती। अब गुरु का चक्र…औरऔर भी

जब देश के भीतर और देश के बाहर अनिश्चितता का माहौल कुछ ज्यादा ही गहरा हो चला हो, तब हमें उन्हीं कंपनियों में निवेश करना चाहिए जो तगड़ी होड़ में भी सीना तानकर खड़ी ही नहीं, लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे माहौल में कमज़ोर पर दांव लगाना अपनी बचत को जान-बूझकर चक्रवात में फंसाने जैसा है। हमें तो वही कंपनी चुननी चाहिए, मजबूत होते हुए भी जिसका दाम गिरा हुआ है। तथास्तु में ऐसी ही एक कंपनी…औरऔर भी

सेंसेक्स तीन साल बाद फिर 21,000 को लांघ गया। लेकिन तब यह चौबीस के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था, अभी अठ्ठारह पर। तब बुक वैल्यू से चार गुना था, अभी 2.8 गुना। क्या अभी बाज़ार के और उठने की गुंजाइश है? देखेंगे, तब की तब। गंभीर मसला यह है कि तब बाज़ार के टर्नओवर में रिटेल निवेशकों की भागीदारी लगभग आधी थी। अभी एक-तिहाई है। संस्थागत निवेशक हावी हैं बाज़ार पर। फिर, कैसे निकालें राह…औरऔर भी

प्रोफेशनल ट्रेडर रिस्क नहीं लेते क्योंकि वे हमेशा शेयरों के ट्रेंड पर चलते हैं। 365, 200, 75 व 50 दिनों के सिम्पल मूविंग औसत (एसएमए) और फिर 20, 13 व 5 दिन के एक्सपोनेंशियल मूविंग औसत (ईएमए) से देखते हैं कि खास शेयर के भावों का रुझान क्या है। वे उठते शेयरों को खरीदते और गिरते शेयरों को शॉर्ट करते हैं। बाकी उछल-कूद मचानेवाले शेयरों पर ध्यान नहीं देते। अब देखें कि रुपया संभला, बाज़ार बढ़ा कैसे…औरऔर भी

हाल में मिडकैप व स्मॉलकैप स्टॉक्स जमकर धुने गए हैं। इस साल बीएसई मिडकैप सूचकांक अब तक 14% गिरा है, जबकि स्मॉलकैप सूचकांक 21% टूटा है। बहुत सारी बातों के अलावा इसकी एक खास वजह यह डर था कि पूंजी बाजार नियामक, सेबी ब्रोकरों व प्रवर्तकों की मिलीभगत की जांच कर रही है। असल में शेयर बाज़ार है तो बुद्धि का खेल, पर चलता है डर व लालच की भावना से। आज क्या रहेगा बाज़ार का हाल?औरऔर भी