जब तीन-तीन सत्ताएं आपके भीतर हैं तो बाहरी सत्ता के फेर में क्यों पड़ना! मन ही मन मातृसत्ता, पितृसत्ता और गुरुसत्ता को साध लिया जाए तो आशीर्वाद व प्रेरणा का ऐसा निर्झर अंदर से बहता है कि कहीं और माथा झुकाने की जरूरत नहीं।और भीऔर भी