मोदी सरकार की नीतियों और नीयत को परखने के बाद विशेषज्ञ विदेशी निवेशकों को यही सलाह दे रहे हैं कि आप भारतीय शेयर बाज़ार से कमाने के लिए थोड़े समय का निवेश ज़रूर करते रहें, लेकिन खुद उद्योग-धंधों में पूंजी लगाने का जोखिम न उठाएं। कारण, मोदी सरकार अपने मुठ्ठी भर चहेतों का हित साधने के लिए कभी भी उनके धंधे पर लात मार सकती है। साथ ही वे अभी शेयर बाज़ार के निवेश को लेकर भीऔरऔर भी

देश में होनेवाले विदेशी निवेश की आशावादी घोषणाओं में कोई कमी नही है। लेकिन वास्तविक निवेश छिटकता जा रहा है। मसलन, जुलाई 2023 में ताइवान के फॉक्सकॉन ग्रुप ने वेदांता समूह के साथ लगाए जानेवाले 19.5 अरब डॉलर के सेमी-कंडक्टर संयुक्त उद्यम से हाथ पीछे खींच लिया। अभी पिछले ही महीने फरवरी में सोनी ने ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ विलय का 10 अरब डॉलर का करार तोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में देश मेंऔरऔर भी

आंकड़ों में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर अच्छी से अच्छी होती जा रही है। पहले अनुमान था कि 31 मार्च 2024 को खत्म हो रहे वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 में हमारा जीडीपी 7.3% बढ़ेगा। फिर दिसंबर 2023 की तिमाही में विकास दर के 8.4% पहुंचने पर पूरे साल का अनुमान बढ़ाकर 7.6% कर दिया। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक का नया अध्ययन आया है जिसके मुताबिक जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर 5.9% के बजाय 7.2% रहऔरऔर भी

देश में चुनावों के माहौल में घोटालों की बहार है। जिन चुनावी बॉन्डों का पूरा ब्योरा देने के लिए देश का सबसे बड़ा बैंक एसबीआई तीन महीने का वक्त मांग रहा था, वह सुप्रीम कोर्ट की फटकार लगते ही तीन दिन में सारा डेटा लेकर सामने आ गया। अब चुनावी बॉन्डों के जरिए कॉरपोरेट क्षेत्र से की गई रिश्वतखोरी व वसूली और मनी-लॉन्ड्रिंग को छिपाने की भरपूर कोशिशें की जा रही हैं। लेकिन आर्थिक व वित्तीय क्षेत्रऔरऔर भी

भारत अगर दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है तो अपनी अंतर्निहित ताकत के दम पर है। हम आज अगर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अगले कुछ सालों में तीसरे नंबर पर आ जाएंगे तो यह हमारी प्राकृतिक, भौगोलिक व मानव संपदा और उद्यमशीलता की देन है, किसी सरकार या नेता की मेहरबानी नहीं। देश में मनमोहन सिंह तो छोड़िए, कोई कम्युनिस्ट सरकार भी होती तो यही होता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी उसीऔरऔर भी

यह कड़वी हकीकत है कि ‘सत्यमेव जयते’ के भारत में सदियों से झूठ का बोलबाला रहा है। तुलसीदास ने करीब छह सदी पहले रामचरित मानस में लिख दिया था, “झूठइ लेना झूठइ देना, झूठइ भोजन झूठ चबेना। बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा, खाइ महा अहि हृदय कठोरा।” मानस में भगवान राम के मुंह से असंतों के बारे में कहलवाई गई यह चौपाई आज हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर एकदम सटीक बैठती है। प्रधानमंत्री मोदीऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पत्र में बड़े गर्व के साथ कहा है कि ‘विकास और विरासत को साथ लेकर भारत ने बीते एक दशक में बुनियादी ढांचों या इंफ्रास्ट्रक्चर का अभूतपूर्व निर्माण’ देखा है। किसी भी विकासशील में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। यह सिलसिला आज़ादी के बाद के सात दशकों से लगातार चल ही रहा है। लेकिन बीते एक दशक में इस दिशा में जो ‘अभतूपूर्व’ काम हुआ है, वो चुनावी बांडों परऔरऔर भी

प्रधानमंत्री ने अपने पत्र में दावा किया है कि उनकी सरकार ने हर नीति व निर्णय के ज़रिए गरीबों, किसानों, युवाओं व महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के ईमानदार प्रयास किए हैं। सरकार की तरफ से नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर, सुब्रह्मण्यम ने कहा है कि देश में गरीबी आबादी के 5% तक सिमट गई है। लेकिन फिर ऐसा क्यों है कि हमारे 81.35 करोड़ या 58.10% लोग सरकार से हर महीने मुफ्तऔरऔर भी

आगामी लोकसभा के चुनावों की तारीख घोषित हो गई। इसी के साथ देश लोकतंत्र के महोत्सव की तैयारी में जुट गया है। तारीखों के ऐलान के ठीक एक दिन पहले दस सालों से देश के प्रधानमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने अपने हस्ताक्षर से सभी देशवासियों के नाम एक पत्र जारी किया है। यह पत्र निश्चित रूप से आपके भी ह्वॉट्स-ऐप नंबर पर आया होगा। सबसे पहला सवाल तो यही कि हम सभी का ह्वॉट्स-ऐप नंबर प्रधानमंत्री केऔरऔर भी

माना जा रहा था कि भारत से लाइसेंस-परमिट राज 33 साल पहले 1991 में नई आर्थिक उदार नीतियां लागू होने के बाद खत्म हो गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनावी बांडों के खुलासे से साफ हो गया कि देश में अब भी कंपनियों के लिए सरकार की कृपा बहुत मायने रखती है। जिस तरह अपोलो टायर्स, बजाज ऑटो, बजाज फाइनेंस, ग्रासिम इंडस्ट्रीज़, महिंद्रा ग्रुप, पिरामल एंटरप्राइसेज़, गुजरात फ्लूरोकेमिकल्स, टीवीएस, सनफार्मा, वर्द्धमान टेक्सटाइल्स, मुथूत, सुप्रीम इंडस्ट्रीज़,औरऔर भी