सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को नई पूंजी उपलब्ध कराने पर तस्वीर जून अंत साफ हो जायेगी। बैंकों को अपने बिजनेस के बढ़ने के साथ-साथ पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सीएआर) के मानक को पूरा करने के लिए बराबर पूंजी बढ़ाते रहने की जरूरत होती है और प्रमुख शेयरधारक होने के नाते में उनमें पूंजी निवेश बढ़ाना सरकार की मजबूरी है। वित्तीय सेवाओं के सचिव डी के मित्तल ने सोमवार को दिल्ली में एक समारोह के दौरान कहा, ‘‘मई अंत अथवाऔरऔर भी

देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) का कहना है कि उसका काम केंद्र सरकार से मिलने वाले 7900 करोड़ रुपए से नहीं चलेगा, बल्कि उसे बढ़ती ऋण मांग को पूरा करने के लिए हर साल 15,000 करोड़ रुपए की दरकार है। बैंक के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) दिवाकर गुप्ता ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा, “बैंक को संचित लाभ समेत कुल 15,000 करोड़ रुपए की जरूरत है। हमें निश्चित रूप से अगलेऔरऔर भी

माइक्रो फाइनेंस सस्थाओं को अब गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की ही एक श्रेणी बना दिया गया है। रिजर्व बैंक मे शुक्रवार को बाकायदा इस बाबत एक अधिसूचना जारी कर दी। अभी तक एनबीएफसी की छह श्रेणियां हैं – एसेट फाइनेंस कंपनी, इनवेस्टमेंट कंपनी, लोन कंपनी, इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कंपनी, कोर इनवेस्टमेंट कंपनी और इंफ्रास्ट्रक्चर डेट फंड – एनबीएफसी। अब इसमें एनबीएफसी – माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन नाम की सातवीं श्रेणी जोड़ दी गई है। रिजर्व बैंक का कहना हैऔरऔर भी

केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में करीब 8700 करोड़ रुपए का नया निवेश करेगी। यह रकम इक्विटी के रूप में होगी। सरकार से इतनी रकम मिल जाने के बाद ये बैंक पूंजी बाजार से भी और रकम जुटा सकते हैं क्योंकि उनके सामने शर्त है कि उनकी इक्विटी में सरकार की हिस्सेदारी किसी भी सूरत में 51 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए। वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बुधवार को यह जानकारी दी। वित्तऔरऔर भी