जीवन के तमाम क्षेत्रों की तरह डेरिवेटिव ट्रेडिंग में भी सिद्धांत और व्यवहार में बड़ा फर्क होता है। फिर भी सिद्धांत जानना इसलिए ज़रूरी है ताकि हम व्यवहार में उतरने का आत्मविश्वास जुटा सकें। उसके बाद उतर गए तो असली दीक्षा व्यवहार ही देता है। मसलन, सिद्धांत कहता है कि ऑप्शन खरीदने में सीमित नुकसान और असीमित लाभ है क्योंकि खरीदने वाले को अधिक से अधिक चुकाया गया भाव या प्रीमियम ही गंवाना पड़ता है, जबकि शेयरऔरऔर भी

ऑप्शंस के भावों की गणना की जटिलता में उतरने से पहले उनकी खरीद-फरोख्त के व्यवहार को थोड़ा और समझने की कोशिश करते हैं। हमने पहले इस सिलसिले में बीमा का उदाहरण लिया था। जब हम एलआईसी से बीमा पॉलिसी खरीदते हैं तो दरअसल हम प्रीमियम देकर अपने जीवन का पुट ऑप्शन खरीद रहे होते हैं। इससे हम अपनी मृत्यु के बाद अपने पर निर्भर परिवार की वित्तीय सुरक्षा हासिल करते हैं। इस मामले में हम ऑप्शन केऔरऔर भी

सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत के चौतरफा दबाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवी द्वि-मासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रहने दिया। नतीजतन, बैंक जिस ब्याज पर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, वो रेपो दर 8 प्रतिशत और जिस ब्याज पर वे रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्त धन रखते हैं, वो रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत पर जस की तस बनी रही। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन नेऔरऔर भी

म्यूचुअल फंड मूलतः शेयर बाज़ार तक आम/रिटेल निवेशकों की पहुंच बनाने के लिए बने हैं। लेकिन अपने यहां रिटेल निवेशक लगातार उनसे दूर होते जा रहे हैं। कमाल की बात यह है कि दूसरी तरफ म्यूचुअल फंडों की आस्तियां बढ़ती जा रही हैं जिससे उनके फंड मैनेजरों का वेतन भी बढ़ रहा है। आस्तियों या एयूएम के बढ़ने की खास वजह है कि कंपनियों और अमीर लोगों के लिए म्युचुअल फंडों की ऋण स्कीमें ब्याज कमाने काऔरऔर भी

भारतीय कंपनियों ने इस कैलेंडर वर्ष 2011 में अब तक करीब 30 अरब डॉलर विदेशी वाणिज्यिक उधार (ईसीबी) से जुटाए हैं। भारतीय मुद्रा में यह कर्ज लगभग 1.50 लाख करोड़ रुपए का बैठता है। लेकिन जनवरी से अब तक डॉलर के सापेक्ष रुपए के 18 फीसदी कमजोर हो जाने से कंपनियों पर इस कर्ज का बोझ 5.40 अरब डॉलर या 27,000 करोड़ रुपए बढ़ गया है। ब्रोकरेज फर्म एसएमसी ग्लोबल सिक्यूरिटीज के रिसर्च प्रमुख व रणनीतिकार जगन्नाधमऔरऔर भी

सच कहूं तो लोगों से आशा ही छोड़ दी है कि हमारी सरकार शेयर बाजार के लिए कुछ कर सकती है। इसलिए ज्यादातर निवेशक भारतीय पूंजी बाजार से निकल चुके हैं और पूरा मैदान विदेशी निवेशकों के लिए खाली छोड़ दिया है। बदला सिस्टम खत्म करने के बाद 2001 में ही संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने डेरिवेटिव सौदों में फिजिकल सेटलमेंट की जरूरत जताई थी। लेकिन दस साल बीत चुके हैं। सेबी फैसला भी कर चुकी है।औरऔर भी