जो चीज सालों से नहीं बदली, उसे बदलने का सुख ही सृजनात्कता का सुख है। बदलने की ललक हो, जीवट हो तो अंदर से ऊर्जा के बुलबुले उठते हैं। ये बुलबुले खुशी की चहक व ताजगी साथ लेकर आते हैं।और भीऔर भी

खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाएंगे। तो क्या बीच में जो था, वो सब निरर्थक था? नहीं। बीच में थी रचनात्मकता जिसने हमें रंग दिया, अर्थ दिया। जीवन कितना जिया? जितना हम रचनात्मक रहे, सृजन किया। बस…और भीऔर भी

विनाश के बिना सृजन नहीं होता। और, सृजन में हर किसी की अपनी-अपनी भूमिका होती है। सृजन और विनाश के देवता शंकर के गणों में कोढ़ी, लूले, लगड़े, अपाहिज और भूत-वैताल तक शुमार किए गए हैं।और भीऔर भी