।।राममनोहर लोहिया।। हिंदुस्तान की भाषाएं अभी गरीब हैं। इसलिए मौजूदा दुनिया में जो कुछ तरक्की हुई, विद्या की, ज्ञान की और दूसरी बातों की, उनको अगर हासिल करना है तब एक धनी भाषा का सहारा लेना पड़ेगा। अंग्रेज़ी एक धनी भाषा भी है और साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय भाषा भी। चाहे दुर्भाग्य से ही क्यों न हो, वह अंग्रेज़ी हमको मिल गई तो उसे क्यों छोड़ दें। ये विचार हमेशा अंग्रेज़ीवालों की तरफ से सुनने को मिलते हैं। इसमेंऔरऔर भी

आज़ादी के पहले और इतने सालों बाद भी जिन हिंदुस्तानियों ने अंग्रेज़ी को अपनाया, विकास और उन्नति का हर रास्ता उनके लिए खुल गया। बाकी लोग निर्वासित हैं। अपनी माटी को दुत्कारती यह कैसी व्यवस्था है जिसे हम ढोए चले जा रहे हैं?और भीऔर भी

शेयर बाजार के बारे में एक सिद्धांत नहीं, बल्कि परिकल्पना है जिसके मुताबिक, कोई भी निवेशक न तो दबे हुए मूल्य के स्टॉक को खरीद सकता है और न ही बढ़े हुए मूल्य के स्टॉक को बेच सकता है। इसे ईएमएच, एफिशिएंट मार्केट हाइपोथिसिस कहते हैं जिसे हम हिंदी में कुशल बाजार परिकल्पना कह सकते हैं। यह परिकल्पना सस्ते में खरीदो, महंगे में बेचों के सूत्र के परखचे उड़ा देती है। कहती है कि कोई भी निवेशकऔरऔर भी

यह सच है कि अंग्रेजी भाषा ने हम भारतीयों को दुनिया से लेने के काबिल बना रखा है। लेकिन आगे बढ़ने के लिए अंग्रेजी सीखने का दबाव न होता तो शायद हम लेने के बजाय दुनिया को दे रहे होते।और भीऔर भी

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा पिछ्ले तीन वर्षों से हिंदी लोक शब्दकोश परियोजना चलाई जा रही है। इस परियोजना के अंतर्गत हिंदी की 48 लोकभाषाओं के डिजिटल और मुद्रित त्रिभाषी (लोकभाषा-हिंदी-अंग्रेजी) कोश बनने हैं। इन लोक शब्दकोशों में उन शब्दों का संग्रह किया जाना है जो विलुप्तप्राय हैं या विलुप्त हो गए हैं। परियोजना का मूल उद्देश्य हिंदी की शाब्दिक संपदा को समृद्ध करने के साथ-साथ लोक के बीच बोलचाल के लिए इस्तेमाल होनेवाले शब्दों का संरक्षणऔरऔर भी

जब हर तरफ देश के अर्थ, व्यापार व वित्त जगत पर अंग्रेजी का आधिपत्य हो तो यह जरूरी हो जाता है कि हम हिंदी या दूसरी भारतीय भाषाओं की संभावनाओं और स्वाभिमान को जगाते रहे। यह जो खबर आप ठीक बगल में नवा जूनी में देख रहे हैं, इसे इकोनॉमिक टाइम्स ने आज अपनी लीड बनाई है। लेकिन हमने यह खबर साल भर पहले ही पेश कर दी थी। इससे मैं यकीकन एक आश्वस्ति का भाव अपनेऔरऔर भी