मायानगरी मुंबई, सपनों की नगरी। लोगों के पास बड़ी-बड़ी गाड़ियां, पर चलाने को सड़क नहीं। हर मिनट पर ट्रेन, पर भीड़ इतनी कि चढ़ना मुश्किल। समुद्र का अथाह जल, मगर मछलियां प्यासी हैं। यहां घुट-घुटकर जीते हैं लोग। सांस लेने की फुरसत नहीं।और भीऔर भी

इंसान की नज़र की सीमा है कि वह रैखिक ही देख सकता है। इसलिए रैखिक ही सोचना सहज है। लेकिन हकीकत यह है कि इस दुनिया में ही नहीं, पूरी सृष्टि में हर चीज का आकार आखिरकार गोल है। इसलिए सहज सोच अक्सर कारगर नहीं साबित होती।और भीऔर भी