जो कभी नहीं हुआ, वो अभी हो रहा है। शुक्रवार, 12 मार्च 1993 को जब सुबह से ही मुंबई बम धमाकों से थर्रा रही है, पूरी मुंबई में 257 लोग मारे गए और 1400 से ज्यादा घाटल हो गए, दोपहर डेढ़ बजे बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बेसमेंट तक में जबरदस्त धमाका हुआ, तब भी अपना शेयर बाजार बंद नहीं हुआ था और उसमें सोमवार 15 मार्च से बाज़ार में बाकायदा ट्रेडिंग होने लगी। बुधवार, 26 मार्च 2008औरऔर भी

दुनिया पर भले ही नई आर्थिक मंदी का संकट मंडरा रहा हो। लेकिन हमारा देश इंडिया यानी भारत इस वक्त भयंकर ही नहीं, भयावह विश्वास के संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। समूची सरकार और उसमें बैठी पार्टी के आला नेता झूठ बोलते हैं। सरकार का हर मंत्री झूठ बोलता है। छोटे-बड़े अफसर भी बेधड़क झूठ बोलते हैं। हालत उस कविता जैसी हो गई है कि राजा बोला रात है, रानी बोलीऔरऔर भी

शेयर बाज़ार सस्ता है या महंगा, इसका एक प्रमुख पैमाना है बाज़ार पूंजीकरण और देश के जीडीपी का अनुपात। अभी हमारा बाज़ार पूंजीकरण 255.58 लाख करोड़ रुपए है जबकि जीडीपी 209.08 लाख करोड़ रुपए तो दोनों का अनुपात 122.24% निकला। इसका लंबे समय का औसत लगभग 80% है तो बाज़ार 52% से ज्यादा महंगा है। दूसरे, सेंसेक्स का पी/ई अनुपात अभी 30.33 गुना है, जबकि उसका लंबे समय का औसत 20.22 गुना है। इस पैमाने से भीऔरऔर भी

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने चालू वित्त वर्ष 2020-21 में देश का जीडीपी कितना रह सकता है, इसका पहला अग्रिम अनुमान पेश कर दिया है। उसका कहना है कि मौजूदा मूल्य पर हमारी अर्थव्यवस्था का आकार पिछले साल के 203.40 लाख करोड़ रुपए से घटकर इस बार 194.82 करोड़ रुपए रह सकता है, जबकि बजट अनुमान 224.89 लाख करोड़ रुपए का था। यानी, पिछले साल से 8.58 लाख करोड़ रुपए और इस साल के बजट अनुमान सेऔरऔर भी

रिजर्व बैंक ने दिसंबर की मौद्रिक नीति समीक्षा में अनुमान लगाया है कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में हमारी अर्थव्यवस्था में 7.5% ही गिरावट आएगी, जबकि उसका पिछला अनुमान 9.5% की गिरावट का था। अगर ऐसा होता है कि इसका श्रेय भारतीय अवाम और उद्योग क्षेत्र को जाएगा, सरकार को नहीं। कारण, अब तक सरकार के सारे घोषित पैकेज ज़मीनी धरातल पर नाकाम और महज दिखावा साबित हुए हैं। जहां सरकार को जीडीपी बढ़ाने के लिए अपनाऔरऔर भी

देश में कोरोना शहरों ही नहीं, गांवों तक फैला है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट तो यहां तक कहती है कि अब ग्रामीण जिले कोविड-19 के नए हॉटस्पॉट बन गए हैं और नए संक्रमण में उनका हिस्सा 50 प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। फिर भी चालू वित्त वर्ष 2020-21 की जून या पहली तिमाही में कृषि व संबंधित क्षेत्र के आर्थिक विकास की गति 3.4 प्रतिशत रही है, जबकि हमारी पूरी अर्थव्यवस्था इस दौरान 23.9 प्रतिशत घटऔरऔर भी

भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की अधिकतर आबादी अभी या तो लॉकडाउन में है या काफी रोकटोक के साथ काम पर जा रही है। कोरोना वायरस का प्रकोप समाप्त करने की रणनीति यह नहीं है, यह बात सभी जानते हैं। इसका मकसद बीमारी के विस्फोट का दायरा घटाने और बचाव का ढांचा खड़ा करने के लिए समय हासिल करने तक सीमित है। फ्लू के वायरस की तरह यह गर्मी आने के साथ नरम पड़ जाएगा, यह समझऔरऔर भी

जब बजट के एक दिन पहले आई आर्थिक समीक्षा में सितंबर 2014 में ज़ोर-शोर से शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ योजना में संशोधन कर ‘असेम्बल इन इंडिया’ जोड़ दिया गया, तभी सकेत मिल गया था कि सरकार का मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को मजबूत बनाने का इरादा अब ढीला पड़ गया है। सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ योजना शुरू करते वक्त लक्ष्य रखा था कि देश के जीडीपी में इसका योगदान 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 2022 तक 25औरऔर भी

आर्थिक मोर्चे से बुरी खबरों का आना रुक नहीं रहा। औद्योगिक गतिविधियों की रीढ़ माना गया इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र भी अब अपना दुखड़ा रोने लगा है। देश के 262 ताप विद्युत संयंत्रों में 133 संयंत्रों को मांग न होने के कारण बंद करना पड़ा है। इससे पहले परिवहन में इस्तेमाल होनेवाले डीजल और सड़क निर्माण में इस्तेमाल होनेवाले बिटूमेन की मांग घटने की खबर आ चुकी है। इस बीच देश के सबसे बडे बैंक एसबीआई ने अपनी रिसर्चऔरऔर भी