प्रकृति ने जो हमें दिया है, उसे मानकर चलना चाहिए। लेकिन समाज ने जो दिया है, वहां हम मानकर चलते हैं तो दूसरे की मौज हो जाती है। खुश रहने के लिए सतत असंतोष जरूरी है। संतोष तो बस छलावा है।और भीऔर भी