हर तरह के व्यापार की कुछ खास जानकारियां होती हैं। व्यापारियों के पास इन्हें पाने के अपने स्रोत, अपने ट्रेड-जर्नल होते हैं, मेटल का अलग, तेल का अलग। शेयर बाज़ार में भी प्रोफेशनल ट्रेडरों व संस्थाओं के पास अपने सॉफ्टवेयर व पेड सब्सक्रिप्शन होते हैं। बिजनेस अखबार या चैनल औरों को दिखाने को होते हैं, जानकारी के स्रोत नहीं। लेकिन हम रिटेल ट्रेडर इन्हीं को पुख्ता स्रोत मानते हैं जो गलत है। अब नए हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

जिसे बेचना है, चमत्कारी छवि बनानी है वो अतिविश्वास दिखाएगा। डंके की चोट पर कहेगा कि फलांना शेयर ले लो, इतने तक जाएगा। अरे भाई/बेन! ये तो बता कि इतने तक जाएगा क्यूं? वो कहेगा कि मैं कह रहा/रही हूं, बस इतना ही काफी है। बेचना है तो हांकना उसकी मजबूरी है। लेकिन हम झांसे में आ गए तो यह हमारा बंटाधार करनेवाली कमज़ोरी है। ट्रेडिंग में अतिविश्वास हमें कहीं का नहीं छोड़ता। अब शुक्रवार की अंतर्दृष्टि…औरऔर भी

हम राकेश झुनझुनवाला या एफआईआई नहीं जो अपनी खरीद से किसी शेयर को चढ़ा दें। न ही हम बैंकर, ब्रोकर या कंपनी प्रवर्तक हैं कि अंदर की खबरें घोषित होने से पहले हमारे पास पहुंच जाएं। हमारी सीमा है कि भावों की भाषा ही ट्रेडिंग का हमारा एकमात्र औजार है। इसे पढ़ने में माहिर हो जाएं और प्रायिकता के मद्देनज़र रिस्क-रिटर्न का सामंजस्य बैठा लें तो जीत हमारी। अन्यथा हारना हमारी नियति है। अब हफ्ता बजट का…औरऔर भी

यह सच है कि शेयर बाज़ार के 95% ट्रेडर नुकसान उठाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि बाकी 5% जमकर कमाते हैं। दरअसल, ट्रेडिंग में ढेर सारी कमाई की संभावना है। मगर, इसके लिए सही नज़रिए और सही रणनीति की ज़रूरत है। इसके कुछ आम तरीके हैं। लेकिन ट्रेडर जब इन्हें अपने व्यक्तित्व के हिसाब से खास बना लेता है तो कामयाबी उसके कदम चूमने लगती है। इस खास तत्व की दिशा में अभ्यास बुधवार का…औरऔर भी

बहुत सारी सूचनाएं हमारे सामने रहती हैं। लेकिन हम उनका महत्व नहीं समझते तो देखते हुए भी गौर नहीं करते। वीवैप (वीडब्ल्यूएपी) ऐसी ही एक सूचना है जो स्टॉक एक्सचेंज पर हमें हर दिन मिलती है। इसका मतलब होता है कि वोल्यूम वेटेट एवरेज प्राइस। देशी व विदेशी संस्थाएं आमतौर पर इसी भाव पर अपने ऑर्डर पेश करती हैं। इसलिए हमारे लिए भी एंट्री का यह अच्छा स्तर हो सकता है। अब शुक्र की ट्रेडिंग का सूत्र…औरऔर भी

लोग सटीक ट्रेडिंग टिप्स के चक्कर में 25,000 रुपए/माह, साल के तीन लाख तक लुटाते हैं। ऊपर से दो लाख का घाटा। फिर रोते हैं कि हाय! मेरे पांच लाख गए। पहले तो टिप्स के चक्कर में पड़ने के बजाय ट्रेडिंग की पद्धति पकड़नी चाहिए। दूसरे, दस में सात सौदे भी गलत निकलें, तब भी आप हर महीने फायदा कमा सकते हैं। फॉर्मूला इतना-सा है कि रिस्क/रिटर्न अनुपात न्यूनतम 1:3 का रखें। अब 2013 की आखिरी ट्रेडिंग…औरऔर भी

हर दिन सैकड़ों शेयर बढ़ते हैं, सैकड़ों गिरते हैं। जैसे, कल एनएसई में 677 शेयर बढ़े तो 481 गिरे। इन सभी में ट्रेडिंग के अवसर थे। लेकिन कौन बढ़ा, कौन घटा, यह हो जाने के बाद पता चलता है। हमें इन अवसरों को पहले पकड़ना होता है ताकि अपनी पूंजी बढ़ा सकें। हर ट्रेडर अपनी रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से शेयर चुनता है। लेकिन हमारा मकसद होना चाहिए न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न। अब आज का बाज़ार…औरऔर भी

ट्रेडिंग से पैसा कमाने के लिए किसी भविष्यवाणी की जरूरत नहीं। आपको बस यह जानना है कि ठीक इस वक्त बाज़ार पर हावी कौन है। तेजड़िए या मंदड़िए? इनमें से जो भी सोच हावी है, उसकी ताकत कितनी है? इस जानकारी के दम पर आपको आंकना होगा कि मौजूदा रुझान कब तक चल सकता है। इसके मद्देनज़र आपको भय और लालच से बचते-बचाते अपनी पूंजी को सही से लगाना है। अब चलें सिद्धांत से व्यवहार की ओर…औरऔर भी

सौ कमाया। सौ गंवाया। रकम बराबर तो कमाने की खुशी और गंवाने का दुख बराबर होना चाहिए। लेकिन हम-आप जानते हैं कि सौ रुपए गंवाने की तकलीफ सौ रुपए कमाने की खुशी पर भारी पड़ती है। इसे निवेश की दुनिया में घाटे से बचने की मानसिकता कहते है। 100 गंवाने का दुख 200 कमाने के सुख से बराबर होता है। इसलिए स्टॉप-लॉस और लक्षित फायदे की लाइन छोटी-बड़ी होती है। मनोविज्ञान का खेल है ट्रेडिंग। अब आगे…औरऔर भी

खराब किस्मत का रोना रोनेवाले अक्सर नाहक मुसीबत मोल लेने और जीत के जबड़े से हार खींच लाने में माहिर होते हैं। ज़रा सोचिए तो सही कि सफलता का बढ़िया ट्रैक-रिकॉर्ड रखनेवाले दिमागदार लोग भी ट्रेड में लगातार पिटते क्यों हैं? क्या यह अज्ञान है, खोटी किस्मत है या अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मारने की फितरत? नशेड़ियों की तरह ऐसे लोग खुद को ही खोखला करते चले जाते हैं। खैर, अब रुख करते हैं बाज़ार का…औरऔर भी