तीन-तीन सत्ता
2012-04-22
जब तीन-तीन सत्ताएं आपके भीतर हैं तो बाहरी सत्ता के फेर में क्यों पड़ना! मन ही मन मातृसत्ता, पितृसत्ता और गुरुसत्ता को साध लिया जाए तो आशीर्वाद व प्रेरणा का ऐसा निर्झर अंदर से बहता है कि कहीं और माथा झुकाने की जरूरत नहीं।और भीऔर भी
प्रणाम गुरुदेव
2010-07-23
असंख्य गुरु हमारे अंदर बैठे हैं और हम उन्हें बाहर तलाशते रहते हैं। कभी रहे होंगे पहुंचे हुए संत और फकीर। अभी तो सब छलिया हैं, धंधेबाज हैं। वैसे भी प्रतिभा को द्रोणाचार्य से ज्यादा उनकी प्रतिमा निखारती है।और भीऔर भी