हमारे शेयर बाज़ार में गिनती के दो-चार लाख लोग ही होंगे जो लगाकर लंबे समय के लिए भूल जाते हैं और कंपनी के साथ निवेश का खिलना देखते हैं। बाकी तो झट लगाया और कमाया की नीति अपनाते हैं। अभी यही रुख हावी है। मजबूत व सुरक्षित कंपनियों से निकाल कर रिस्की मिड कैप व स्मॉल कैप या कमज़ोर कंपनियों में लगाया और उठाया। मुनाफावसूली की और फिर सुरक्षित स्टॉक्स खरीद लिए। अब हफ्ते का अंतिम ट्रेड…औरऔर भी

दोस्तों! ट्रेडिंग का यह पेड कॉलम शुरू किए हुए आज पूरे एक साल हो गए। आपका पता नहीं, लेकिन मैं इस कॉलम से अभी तक संतुष्ट नहीं हूं। सच है कि भावी अनिश्चितता को मिटाना किसी के लिए भी संभव नहीं। लेकिन ट्रेडिंग की जितनी संभाव्य स्थितियां हो सकती हैं उनमें कम से कम रिस्क में अधिकतम रिटर्न की गिनी-चुनी स्थितियां ही अभी तक हाथ लगी हैं। अभी बहुत कुछ सीखना-सिखाना जरूरी है। अब गुरु की दिशा…औरऔर भी

क्यूपिड का मतलब है प्रेम का देवता, कामदेव। इसी के नाम पर 1985 में बनी क्यूपिड ट्रेड्स एंड फाइनेंस। मुंबई के पंचरत्न ओपरा हाउस में दफ्तर है। केतनभाई सोराठिया इसके कर्ताधर्ता हैं। कल सुबह एसएमएस आया कि क्यूपिड ट्रेड्स को 145 पर खरीदें, महीने भर में 460 तक जाएगा। अरे भाई, कैसे? सालों से कंपनी का धंधा तो निल बटे सन्नाटा है! सावधान रहें ऐसे प्रेम-पत्रों से। झांसे में कतई न आएं। अब देखें गुरुवार का बाज़ार…औरऔर भी

शेयर/कमोडिटी बाज़ार में जो भी ट्रेडिंग से कमाना चाहते हैं, उन्हें यह सच अपने जेहन में बैठा लेना चाहिए कि यहां भावी अनिश्चितता को मिटाना कतई संभव नहीं। यहां सांख्यिकी या गणित की भाषा में प्रायिकता और आम बोलचाल की भाषा में संभावना या गुंजाइश चलती है। जो भी यहां भाव के पक्का बढ़ने/घटने की बात करता है वह या तो अहंकारी मूर्ख है या तगड़ा धंधेबाज़। इस सच को समझते हुए करते हैं हफ्ते का आगाज़…औरऔर भी

हम अपनी मान्यताओं और धारणाओं से इतने बंधे होते है कि हम ट्रेडिंग या निवेश शेयर बाज़ार की वास्तविक स्थिति के हिसाब से नहीं, बल्कि अपनी मान्यताओं और धारणाओं के हिसाब से करते हैं। लेकिन शेयर बाज़ार ही नहीं, किसी भी क्षेत्र में कामयाबी की पहली शर्त यह है कि हम मुक्त मन और खुले दिमाग से काम करें। तब हमें अपनी धारणाओं की सीमा और निरर्थकता भी साफ दिखती है। अब पकड़ते हें बाज़ार की चाल…औरऔर भी

बाज़ार को लेकर हर किसी की अपनी-अपनी धारणा है, स्टाइल है। जैसे कुछ लोग कहां पर एंट्री मारनी है, इसको खास तरजीह ही नहीं देते। उनका कहना है कि ट्रेडिंग में एंट्री निश्चित रूप में महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे कम। अहम बिंदु वो है जब कोई स्टॉक ट्रेंड बदल रहा हो क्योंकि इस मोड़ पर रिस्क और रिवॉर्ड का अनुपात सबसे बेहतर होता है। जोखिम कम से कम और रिटर्न ज्यादा से ज्यादा। अब, मंगल की ग्रहदशा…औरऔर भी

बहुत से चार्ट पैटर्न और इंडीकेटर उल्टे संकेत दें तो हम पक्का निर्णय नहीं ले पाते। ऐसे में संभावना पकड़कर चलना चाहिए। मगर, ज्यादातर लोग पक्का निर्णय चाहते हैं। वे अनिश्चितता को पचा नहीं पाते। मन से निर्णय करते हैं। मानते हैं कि बाज़ार उन्हें सही साबित करेगा। सही होने का यह गुरूर अक्सर उन्हें बहुत महंगा पड़ता है। बाज़ार के पलटते ही हमें बगैर चूं-चपट किए घाटा काटकर हट जाना चाहिए। जिद से बचें, बढ़ें आगे…औरऔर भी

ट्रेड में घुसते ही स्टॉप-लॉस लगाना जरूरी है। शेयर अनुमानित दिशा में उठने लगे तो स्टॉप-लॉस को उठाते जाएं। अगर शॉर्ट-सेल किया है और शेयर लक्ष्य की दिशा में गिरने लगे तो स्टॉप-लॉस को नीचे ला सकते हैं, लेकिन कभी भी ऊपर न करें। इसी तरह लांग सौदों में स्टॉप-लॉस को उठा तो सकते हैं, लेकिन कभी भी नीचे न लाएं। सौदे को और मोहलत देने की सोच सिर्फ-और-सिर्फ हराती है। अब रुख आज के बाज़ार का…औरऔर भी

शेयरों में ट्रेडिंग से शांत मनवाले ही कमा पाते हैं। एक विशेषज्ञ ने बताया कि कुल मिलाकर गिनें तो ट्रेडिंग के दस लाख तरीके निकल आएंगे। इसलिए ‘किसको पकड़ूं, किसको छोड़ूं’ के भ्रम में पड़े लोग आदर्श तरीके की खोज में ज़िंदगी भर भटकते रह जाते हैं, कभी ट्रेडिंग नहीं कर पाते। करने पर घाटा खाते हैं तो फिर आदर्श की तलाश में भटकने लगते हैं। अहम है रिस्क और प्रायिकता को समझना। अब आज की बात…औरऔर भी

जिस तरह सियारों के झुंड में पड़ा शेर सियार नहीं बन जाता, कौओं के झुंड में फंसा हंस कौआ नहीं बन जाता, वैसे ही निवेश-निवेश के शोर में आम भारतीय निवेशक ट्रेडर से निवेशक नहीं बन सकता। अभी भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की जो स्थिति है, उसमें उसे ऐसा बनना भी नहीं चाहिए। पांच साल के ऊपर का निवेश किसी म्यूचुअल फंड की लांग टर्म इक्विटी स्कीम में और उससे पहले शुद्ध ट्रेडिंग। आज क्या हैं ट्रेडिंग केऔरऔर भी