बहुचर्चित कहावत है कि स्टॉप-लॉस लगते ही जिस ट्रेडर का दिल बैठ जाए, उसकी हालत उस सर्जन जैसी है जो ऑपरेशन टेबल पर मरीज का खून देखते ही बेहोश हो जाए। यहां सारा खेल प्रायिकता है। अच्छे से अच्छे ट्रेड के भी गलत होने की प्रायिकता 20-25% हो सकती है। घाटा ज्यादा न लगे, इसीलिए स्टॉप-लॉस की व्यवस्था की गई है। कुछ लोग तो स्टॉप-लॉस को स्टॉक ट्रेडिंग की लागत बताते हैं। अब चलाएं बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

फाइनेंस की दुनिया खतरों से भरी पड़ी है। जगह-जगह शिकारी घात लगाए बैठे हैं जो मासूम लोगों की लालच का फायदा उठाकर एकदम वैधानिक तरीके से उनकी गाढ़ी बचत लूट ले जाते हैं। फॉरेक्स से लेकर कमोडिटी व स्टॉक्स में ट्रेडिंग टिप्स के नाम पर तो भयंकर लूट मची है। महीने के 25,000 तक लेते हैं। हमारी कोशिश है कि आप इनसे बचें। इनका सार्थक व तर्कसंगत विकल्प बनने की कोशिश है हमारी। अब डगर मंगल की…औरऔर भी

लोग शेयर बाज़ार को भयंकर ललचाई नज़र से देखते हैं। खासकर तेज़ी के मौजूदा माहौल में वे गारंटी चाहते कि कोई शेयर कितना बढ़ेगा। बड़े मासूम हैं वो कि नहीं समझते कि बाज़ार में पक्की गारंटी जैसी कोई चीज़ नहीं होती। यहां रिस्क है जिसे सफलतम ट्रेडर को संभालना पड़ता है। पहले स्टॉप-लॉस से लोग इसे संभालते थे। अब रिस्क मैनेजमेंट के दूसरे तरीके भी आ गए हैं। घटी मुद्रास्फीति ने बाज़ार को संभाला है। अब आगे…औरऔर भी

थोड़ा-सा धैर्य और थोड़ी-सी समझ हो तो शेयर बाज़ार में निवेश से कमाई कतई मुश्किल नहीं। हमने यहीं पर इसी साल 26 जनवरी को एसबीआई को तीन साल में 2900 तक पहुंचने के लक्ष्य के साथ 1615 पर खरीदने की सिफारिश की थी। यह शेयर 14 फरवरी को 1455 तक गिर गया। लेकिन 26 मई को 2835 तक उठ गया। चार महीने में 75.54% का रिटर्न! सुचितिंत रणनीति हमेशा फायदा कराती है। आज फिर एक लार्जकैप कंपनी…औरऔर भी

बाज़ार सबके लिए एक है। स्टॉक्स की लिस्ट और उनसे बने सूचकांक सबके लिए एक हैं। लेकिन हर दिन वहां से कुछ लोग रोते हुए निकलते हैं तो कुछ खिलखिलाते हुए। जाहिर है कि हर ट्रेडर की गति उसकी व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर है, न कि बाज़ार की वस्तुगत स्थिति पर क्योंकि उठना-गिरना तो बाज़ार का शाश्वत स्वभाव है। इसलिए कुछ जानकार लोग कहते हैं कि ट्रेडिंग खुद को खोजने जैसा काम है। अब खोज गुरुवार की…औरऔर भी

शेयर सबसे ज्यादा माकूल खबरों से उठते/गिरते हैं। मसलन, कल खबर आई कि सुप्रीम कोर्ट ने गोवा में सशर्त खनन की इजाजत दे दी तो सेसा स्टरलाइट तीन मिनट में 4.55% उछल गया। लेकिन गौर फरमाइए। एजेंसी व चैनलों पर यह खबर दोपहर 3.09 बजे आई। पर शेयर में उछाल 2.48 से 2.51 बजे के बीच आया। खबर आने से 21 मिनट पहले! हमारे-आप जैसे लोगों के पास इतनी तेज़ी हो नहीं सकती। अब वार मंगलवार का…औरऔर भी

अगर देश ही नहीं, पूरी दुनिया में सर्वे कराया जाए कि बिजनेस न्यूज़ चैनल देखनेवाले कितने लोग ट्रेडिंग से कमाते हैं तो यकीन मानिए कि नतीजा होगा: कोई नहीं, शत-प्रतिशत घाटा खाते हैं। इसका एक कारण यह है कि न्यूज़ जब तक इन चैनलों तक पहुंचती है, तब तक वो बेअसर होकर उल्टी दिशा पकड़ चुकी होती है। दूसरा यह कि यहां न्यूज़ को सनसनीखेज़ बनाने के लिए अतिरंजित कर दिया जाता है। अब बुधवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

न्यूनतम रिटर्न में अधिकतम रिटर्न पाने की ट्रेडिंग रणनीति कहती है कि जिस दिन न्यूज़ हो, नतीजे हों, उस दिन शेयर को हाथ न लगाएं। पर कल हमने जान-बूझकर यह नियम तोड़ते हुए नतीजे के दिन एबीबी में खरीद की सलाह दी। सात दिन में 9.96% संभावित रिटर्न की बात थी। लेकिन यह तो एक ही दिन में 12.80% उछल गया! ज्यादा रिस्क, ज्यादा फायदा। लेकिन बूंद-बूंद कमाने की नीति ज्यादा सही है। अब बुधवार की बौद्ध-बुद्धि…औरऔर भी

शेयर बाज़ार एक जैसी जगह है कि जहां लंबा/लांग होने से कहीं ज्यादा फायदा छोटा/शॉर्ट होने में है। दरअसल, शॉर्ट सौदे केवल फ्यूचर्स और ऑप्शंस सेगमेंट में शामिल शेयरों में किए जा सकते हैं और वहां लीवरेज़ काफी ज्यादा होता है। कम पूंजी में बड़े सौदे और बड़ा मुनाफा। शेयर एक दिन में 2% गिरा तो आप 20% तक कमा सकते हैं। लेकिन सीधा-सा नियम है कि रिवॉर्ड ज्यादा तो रिस्क भी ज्यादा। अब गुरुवार की बौद्ध-ट्रेडिंग…औरऔर भी

विदेशी निवेशक (एफआईआई) हमारे बाज़ार के गुब्बारे में हवा भर चुके हैं। करीब महीने पर पहले इकनॉमिक टाइम्स ने एक अध्ययन किया था। सेंसेक्स से ज्यादा एफआईआई हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 16000 पर आ गया और कम हिस्से वाले स्टॉक्स निकाल दिए तो वो 41000 पर चला गया। घरेलू संस्थाओं से लेकर कंपनियों के प्रवर्तक तक बेच रहे हैं, विदेशी खरीदे जा रहे हैं। आखिर क्यों? जवाब जटिल है। अब इस हफ्ते की चाल…औरऔर भी