अपने यहां इनकम टैक्स की अधिकतम दर 30% है,  जबकि चीन में यह दर 45%, जर्मनी में 45%, जापान में 50% और स्वीडन में 57% है। लेकिन टैक्स की कम दरों के बावजूद भारत में अवाम पर बोझ ज्यादा है। कारण, भारत में सामाजिक सुरक्षा नहीं है, जबकि यहां गिनाए गए सभी देशों में हर व्यक्ति को रिटायरमेंट पेंशन, स्वास्थ्य और बच्चों के पालन-पोषण की अनिवार्य बीमा सरकार की तरफ से मिलती है। ऊपर से भारत मेंऔरऔर भी

एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस अब स्वास्थ्य बीमा के धंधे में भी उतर गई है। कंपनी ने हॉस्पिटल कैश स्कीम पेश की है जिसमें पालिसीधारकों को अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान प्रतिदिन एक निश्चित भत्ता मिलेगा। एसबीआई लाइफ की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि हास्पिटल कैश योजना पालिसीधारकों को अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उनकी कुल बचत को निकालने से बचाती है। अस्पताल का बिल कितना भी हो, पर इस योजना के तहतऔरऔर भी

एक जानी-मानी जीवन बीमा कंपनी अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के विज्ञापन में लोगों से सवाल पूछती है कि क्या आपका हेल्थ इंश्योरेंस स्वस्थ है? अगर यह सवाल आपसे पूछा जाए तो शायद आप अपने कंधे उचका कर जवाब देंगे – मुझे नहीं मालूम। पर आपका जवाब सही नहीं है। यह हमारी राय में लापरवाही से भरा विचार है। अगर आप सेहत संबंधी किसी समस्या के आ जाने पर आर्थिक चिंताओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो जैसेऔरऔर भी

बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) ने स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के लिए पोर्टेबिलिटी (पॉलिसी बदले बगैर कंपनी बदलने की सुविधा) लागू करने की समय-सीमा बढ़ाकर एक अक्टूबर कर दी है। पहले इसे अगले महीने एक जुलाई से लागू किया जाना था। बताया जा रहा है कि बीमा कंपनियों की तैयारी न होने की वजह से तारीख बढ़ाई गई है। अभी स्वास्थ्य बीमा कराने वालों का कोई सामूहिक डाटा भी नहीं है। पिछले कई महीनों से लोगबाग एक जुलाईऔरऔर भी

चीन में 50 अरब अमेरिकी डॉलर के दवा बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने की तैयारी के बीच भारत ने घरेलू कंपनियों की वकालत करते हुए कहा कि वे पड़ोसी देश को सस्ती दर पर जीवन रक्षक दवा उपलब्ध कराने में सक्षम हैं। चीन में भारतीय दूतावास में व्यापार और वाणिज्य दूत के नागराज नायडू ने कहा, ‘‘चीन का दवा बाजार तेजी से बढ़ रहा है और इसका आकार 50 अरब डॉलर के करीब है।’’औरऔर भी

अगर स्वास्थ्य बीमा सभी के लिए अनिवार्य कर दी जाए और शिक्षा शुल्क की तरह सभी से इसका प्रीमियम लिया जाए तो कैसा रहेगा! यह सुझाव दिया गया है कि उद्योग संगठन फिक्की और बीमा कंपनी आईएनजी इंश्योरेंस द्वारा गठित फाउंडेशन फोर्टे (फाउंडेशन ऑफ रिसर्च, ट्रेनिंग एंड एजुकेशन इन इंश्योरेंस इन इंडिया) के एक ताजा अध्ययन में। बता दें कि जर्मनी समेत तमाम यूरोपीय देशों में अनिवार्य स्वास्थ्य बीमा का प्रावधान है। इसका प्रीमियम नौकरीपेशा लोगों केऔरऔर भी

शायद आप भी उचित हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी चुनने की मुश्किल से रू-ब-रू हुए होंगे। पिछले दिनों ऐसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा क्लिनिकल रिसर्च प्रोफेशनल अनुपम मिश्र को। 25 साल के अनुपम ने जब हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने के लिए बाजार की पड़ताल की तो वे अकबका रह गए। क्या लूं और क्या छोड़ दूं? बेसिक कवर, मेडिक्लेम, जटिल सर्जिकल प्रोसीजर्स, क्रिटिकल इलनेस, कैशलेश व हॉस्पिटल कैश री-इम्बर्समेंट जैसे प्लान्स ने अनुपम को कन्फ्यूज कर दिया।औरऔर भी

सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों को स्वास्थ्य बीमा पर भारी घाटा उठाना पड़ रहा है। प्रीमियम के रूप में हासिल हर 100 रुपए पर उन्हें 140 रुपए क्लेम व अन्य मदों में खर्च करना पड़ता है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने मंगलवार को राज्यसभा में लिखित बयान में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इसी वजह से इन कंपनियों को मेडिक्लेम में दी जानेवाली कैशलेस सुविधा को सीमित करना पड़ा है। बता दें किऔरऔर भी

देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज फेडरेशन के मुताबिक भारत में 1995 में डायबिटीज के 1.90 करोड़ मरीज थे। 2007 में यह संख्या 4.09 करोड़ हुई और इस साल 2010 में 5.08 करोड़ हो जाने का अनुमान है। चेन्नई के एमवी हॉस्टिपल के ताजा अध्ययन के अनुसार डायबिटीज का हर मरीज साल भर में इसके इलाज पर 25,931 रुपए खर्च करता है यानी सभी मरीजों का सालाना खर्चऔरऔर भी

यह किसी आम आदमी का नहीं, बल्कि हिंदुस्तान टाइम्स समूह के बिजनेस अखबार मिंट के डिप्टी एडिटर स्तर के खास आदमी का मामला है। उनका नाम क्या है, इसे जानने का कोई फायदा नहीं। लेकिन उनके साथ घटा वाकया जानने से बीमा उद्योग का ऐसा व्यावहारिक सच हमारे सामने आता है जो साबित करता है कि इस उद्योग में निहित स्वार्थों का ऐसा नेक्सस बना हुआ है जिसका मकसद बीमा उद्योग या कंपनी का विकास नहीं, बल्किऔरऔर भी