विचित्र, किंतु सत्य है कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से कमाई शिव का धनुष तोड़ने जैसा पराक्रम हो गया है। बड़े-बड़े महारथी बड़े दम-खम और दावे के साथ ट्रेडिंग में उतरते हैं। लेकिन शिव का धनुष तोड़ने की बात तो छोड़िए, उसे टस से मस तक नहीं कर पाते। मैं यह बात हवा में नहीं, बड़े-बड़े महारथियों से बातचीत के आधार पर कह रहा हूं। कुछ दिन पहले की बात है। इंजीनियरिंग छोड़कर होलटाइम ट्रेडिंग में लगेऔरऔर भी

इस समय दुनिया भर में हाई फ्रीक्वेंसी और अल्गोरिदम ट्रेडिंग पर बहस छिड़ी हुई है। इस हफ्ते सोमवार और मंगलवार को हमारी पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने भी इस पर दो दिन का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन किया। इससे एक खास बात यह सामने आई कि सेकंड के हज़ारवें हिस्से में ट्रेड करनेवाले ऐसे महारथी भी पहले छोटे सौदों से बाज़ार का मूड भांपते हैं और पक्का हो जाने पर बड़े सौदे करते हैं। अब वार बुधवार का…औरऔर भी

अल्गोरिदम ट्रेडिंग या हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का नाम आपने सुना ही होगा। जानते भी होंगे कि इसमें ट्रेडिंग का सारा काम कंप्यूटर सॉफ्टवेयर करते हैं। करोड़ों का दांव खेलनेवाली संस्थाएं इस तरह की ट्रेडिंग का सहारा लेती है। हमें पांच-दस फीसदी की कमाई चाहिए होती है, जबकि अल्गो ट्रेडिंग में पांच-दस पैसे का लाभ एक-एक दिन में लाखों की कमाई करा देता है। सवाल उठता है कि क्या इस हाई फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग का मुकाबला हम जैसे आमऔरऔर भी