काश! हम उतना ही पैदा करते, जितना वाकई आवश्यक है। लेकिन मुनाफा बढ़ाते जाने के इस दौर में अनावश्यक चीजें बनाई और ग्राहकों के गले उतारी जा रही हैं। इससे वो प्राकृतिक संपदा छीझती जा रही है जो फिर कभी वापस नहीं आएगी।और भीऔर भी