आप बुरा होना पक्का माने बैठे हों, तब ऐनवक्त पर वैसा न होना आपको बल्लियों उछाल देता है। कल ऐसा ही हुआ। थोक और रिटेल मुद्रास्फीति के ज्यादा बढ़ जाने से सभी मान चुके थे कि रिजर्व बैंक ब्याज दर बढ़ा ही देगा। लेकिन उसने मौद्रिक नीति को जस का तस रहने दिया। ग्यारह बजे इसका पता लगने के तीन मिनट के भीतर निफ्टी सीधा एक फीसदी उछलकर 6225.20 पर जा पहुंचा। पकड़ते हैं आज की गति…औरऔर भी

बच्चों की पढ़ाई से लेकर रिटायरमेंट की योजना काफी पहले से बनानी होती है। आप जो भी बचाते हैं, उसे मुद्रास्फीति खोखला न कर दे, इसका भी इंतज़ाम करना होता है। यह आप तब तक नहीं कर सकते, जब तक बचत का 20-30% हिस्सा स्टॉक्स में नहीं लगाते क्योंकि कंपनियां ही आपको 12-15% रिटर्न दे सकती हैं। वो भी तब, जब आप सुरक्षित व मजबूत कंपनियों का चयन करें। तथास्तु में आज ऐसी ही कुछ चुनिंदा कंपनियां…औरऔर भी

बिजनेस चैनलों का अपना बिजनेस मॉडल है। ज्ञान देते एनालिस्टों के खाने कमाने का अपना मॉडल है। आर्थिक अखबारों का अलग बिजनेस मॉडल है। हम जित्ता इन्हें देखते या पढ़ते हैं, इनका धंधा उत्ता चमकता है। मुनाफा ही उनका ध्येय है, खबर उनका धंधा है। हमारा भला उनके लिए रत्ती भर मायने नहीं रखता। ट्रेडिंग भी एक धंधा है तो किसी गैर को नहीं, हमें ही इसका बिजनेस मॉडल बनाना होगा। अब देखते हैं आज का बाज़ार…औरऔर भी

हर दिन बाज़ार से घनेरों सूचनाएं निकलती हैं। इनमें से काम की सूचना निकालना और विश्लेषण करना कठिन है। फिर तमाम संकेतकों में इन्हें बैठा कर किसी नतीजे पर पहुंचना कठिन है। स्टॉक एनालिस्ट बनना भी कठिन है, बशर्ते यह नौकरी कहीं न मिल जाए। लेकिन ट्रेडिंग करना और भी कठिन है। चार्ट बना लिया। पर चार्ट का दाहिना हिस्सा खाली है। इसे भरने का हुनर अनुभव, अध्ययन, अभ्यास व अनुशासन से आता है। बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

इतिहास भले अपने-आप को दोहराता हो। लेकिन कल के आधार पर नहीं तय हो सकता कि आज या कल क्या होगा। टेक्निकल एनालिसिस के साथ यही समस्या है। वो अब तक हो चुकी ट्रेडिंग के आंकड़ों को लेकर भावी गति को बताने का दम भरती है। वो समय से पीछे चलती है। यही वजह है कि शेयर बाज़ार में ऑपरेटर कमाई करते हैं। बाकी ट्रेडर कंगाल होते रहते हैं। हम चलते हैं टेक्निकल एनालिसिस से बराबर आगे…औरऔर भी

बाज़ार को लेकर हर किसी की अपनी-अपनी धारणा है, स्टाइल है। जैसे कुछ लोग कहां पर एंट्री मारनी है, इसको खास तरजीह ही नहीं देते। उनका कहना है कि ट्रेडिंग में एंट्री निश्चित रूप में महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे कम। अहम बिंदु वो है जब कोई स्टॉक ट्रेंड बदल रहा हो क्योंकि इस मोड़ पर रिस्क और रिवॉर्ड का अनुपात सबसे बेहतर होता है। जोखिम कम से कम और रिटर्न ज्यादा से ज्यादा। अब, मंगल की ग्रहदशा…औरऔर भी

यूं तो ज्यादातर ट्रेडर हाई ब्लड-प्रेशर के शिकार होते है। लेकिन उत्तेजना में जीनेवाले ट्रेडर ज्यादा टिकते नहीं। लाभ-हानि दोनों ही अवस्था में जो शांत रहते हैं, वही टिकते हैं। सौदे में बड़ी कमाई से चहकनेवाले ट्रेडर उस वकील जैसे हैं जो मुकदमे के बीच ही नोट गिनने लगता है। वहीं घाटा खाकर लस्त पड़नेवाले ट्रेडर उस सर्जन जैसे हैं जो ऑपरेशन टेबल पर मरीज का खून देखकर बेहोश हो जाता है। अब बाज़ार पर शांत नज़र…औरऔर भी

मन को न संभाले तो हर ट्रेडर जुए की मानसिकता का शिकार होता है। मान लीजिए, नौ बार सिक्का उछालने पर टेल आए तो हममें से ज्यादातर लोग मानेंगे कि अगले टॉस में हेड आना पक्का है। जबकि वास्तविकता यह है कि पिछले नौ की तरह दसवें टॉस में भी हेड या टेल की संभावना 50-50% है। इसी मानसिकता में बार-बार नुकसान खाकर हम लंबा दांव खेल सब गंवा बैठते हैं। अब करें सही दांव की शिनाख्त…औरऔर भी

नियम है कि बाज़ार में एंट्री मारते समय बहुत सावधानी बरतें। पूरी रिसर्च के बाद ही किसी सौदे को हाथ लगाएं। लेकिन निकलने में तनिक भी देर न करें। राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड़ जाता था। हल्की-सी आहट मिली कि खटाक से निकल लिए। पर आम लोग इसका उल्टा करते हैं। घुसते खटाक से हैं। लेकिन लंबा इंतज़ार करते हैं कि बाज़ार उनकी चाहत पूरा करेगा, तभी निकलेंगे। देखते हैं आज का बाज़ार…औरऔर भी

अनाड़ी ट्रेडर जहां-तहां मुंह मारते हैं। वहीं प्रोफेशनल ट्रेडर एक ही बाज़ार में महीनों डटे रहते हैं। प्रोफेशनल एक खास तरीके पर महारत हासिल करते हैं। बहुत-से लोग उनकी ट्रेडिंग का पैटर्न देखकर भी सीखते हैं। लेकिन हर हाल में आपको अपना सौदा तथ्यों और संभावनाओं पर टिकाना होता है, न कि ‘गट-फीलिंग’ या उम्मीद पर। सही उत्तर अपनी रिसर्च से तलाशे जाते हैं। तभी आप में ट्रेडिंग का आत्मविश्वास बनेगा। इसी कड़ी में बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी