दुनिया पर भले ही नई आर्थिक मंदी का संकट मंडरा रहा हो। लेकिन हमारा देश इंडिया यानी भारत इस वक्त भयंकर ही नहीं, भयावह विश्वास के संकट के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री झूठ बोलते हैं। समूची सरकार और उसमें बैठी पार्टी के आला नेता झूठ बोलते हैं। सरकार का हर मंत्री झूठ बोलता है। छोटे-बड़े अफसर भी बेधड़क झूठ बोलते हैं। हालत उस कविता जैसी हो गई है कि राजा बोला रात है, रानी बोलीऔरऔर भी

सूचकांकों के पैमाने पर देखें तो हमारा शेयर बाज़ार फिर ऐतिहासिक ऊंचाई पर है। सेंसेक्स दिसंबर 2007 और नवंबर 2010 में कमोबेश इन्हीं स्तरों पर था। इसका मतलब यह हुआ कि दिसंबर 2007 में जिसने सेंसेक्स में पैसे लगाए होंगे, आज करीब छह साल बाद उसका रिटर्न शून्य है। 10% मुद्रास्फीति के असर को जोड़ दें तो उसके 100 रुपए आज असल में घटकर 56.45 रुपए रह गए हैं। निवेशक दुखी, ट्रेडर खुश। अब आगाज़ आज का…औरऔर भी

शेयर बाज़ार में ज्यादातर वही लोग आते हैं, जिनके पास झमाझम धन होता है। गरीब-गुरबां बहुत हुआ तो लॉटरी या जुए तक सिमटकर रह जाते हैं। लेकिन इन अतियों के बीच देश भर में शायद लाखों लोग ऐसे होंगे जो शेयर बाज़ार में इफरात धन बनाने के मकसद से उतरते हैं। शेयर बाजार में हर दिन करीब 3.15 लाख करोड़ रुपए का टर्नओवर होता है। उन्हें लगता है कि इसमें से हर महीने तीस-चालीस हज़ार रुपए तोऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में निवेश करना मुश्किल नहीं। अच्छी कंपनी चुनो और धन लगाकर निश्चिंत हो जाओ। पर सफल ट्रेडर बनना हर किसी के बूते की बात नहीं। इसके लिए जोखिम उठाने की कुव्वत, अनुशासन और गिनती में पक्का होना जरूरी है। सिगरेट जैसी लत न छोड़ पाने वाला, हर दमड़ी को दांत से दबाने वाला या सरल गुणा-भाग में चकराने वाला शख्स कभी भी अच्छा ट्रेडर नहीं बन सकता। सोच लें आप। हम बना लें आज की रणनीति…औरऔर भी

यकीन नहीं आता। लेकिन कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की तरफ से निवेशकों को पूंजी बाज़ार में पारंगत बनाने के लिए जारी 156 पेज की नई किताब के पेज नंबर 84 पर बताया गया है कि, ‘भारतीय बाज़ार में केवल रिटेल निवेशकों को ही डे-ट्रेड की इजाज़त है।’ डे ट्रेडिंग का मतलब शेयरों की उस खरीद-फरोख्त से है, जिन्हें दिन के दिन में निपटा लिया जाता है। बाज़ार बंद होने से पहले ही सारी पोजिशंस काट ली जाती हैं।औरऔर भी

बजट में अर्थव्यवस्था या निवेश संबंधी ऐसा कुछ नहीं था कि शेयर बाजार दोपहर तक ठीकठाक बढ़त के बाद यूं धड़ाम हो जाता। एक करोड़ रुपए से ज्यादा आमदनी वालों पर 10 फीसदी सरचार्ज लगाना कोई अनहोनी तो है नहीं। फिर भी निफ्टी 1.79 फीसदी की गिरावट के साथ 5693 पर पहुंच गया। असल में गिरावट की असली वजह है तथाकथित विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली। बजट में प्रावधान है कि एफआईआई को टैक्स से बचनेऔरऔर भी

निफ्टी 5400 तो छोड़िए, 5338.40 को भी पार नहीं कर सका और 0.66 फीसदी की गिरावट के साथ 5322.90 पर बंद हुआ। किंगफिशर एयरलाइंस खुला तो थोड़ा बढ़कर। लेकिन 18.70 रुपए तक जाने के बाद 11.11 फीसदी की बढ़त लेकर 18.50 रुपए पर बंद हुआ। गिरते बाजार में भी शेयर बढ़ते हैं। बाजार से कमाई के लिए इसी पारखी नजर को विकसित करने की जरूरत है। यह नज़र या कला अभ्यास से एक न एक दिन आऔरऔर भी

विद्वानों के मुताबिक कई तरह के संकट भारतीय अर्थव्यवस्था पर मंडरा रहे हैं। यूरो ज़ोन के संकट का खिंचना इस पर भारी पड़ेगा। मनमोहन सिंह की सरकार नीतिगत फैसलों में पंगु बनी हुई है। यूपीए गठबंधन में ममता ने ऐसा बवाल मचा रखा है कि सरकार को राष्ट्रीय आंतकवादी विरोधी केंद्र (एनसीटीसी) तक पर झुकना पड़ रहा है। ऊपर से घोटाले हैं कि थमने का नाम तक नहीं ले रहे। कोयला तो काला था ही। पवित्र गायऔरऔर भी

मैंने कहा था कि सेंसेक्स अगले कुछ सत्रों में 500 अंक बढ़ जाएगा। 250 अंक तो वो पहले ही बढ़ चुका था और आज ही एनएवी के चलते 300 से ज्यादा अंकों की बढ़त उसने और ले ली। यह कोई करिश्मा नहीं, पहले से तय था। इसका श्रेय डेरिवेटिव सौदों में कैश सेटलमेंट की व्यवस्था को दिया जाना चाहिए। आईएफसीआई जैसे स्टॉक को पहले तोड़कर 39.5 रुपए तक ले जाया गया और वापस 42.5 रुपए पर पहुंचाऔरऔर भी

अगर बजट में घोषित आयकर कानून का प्रस्तावित संशोधन लागू कर दिया गया तो अब तक हुई सारी दोहरा कराधान बचाव संधियां (डीटीएए) निरस्त हो जाएंगी क्योंकि इन संधियों का मकसद ही खास परिस्थितियों में खास किस्म की आय को टैक्स की कम या शून्य दरों का फायदा देना है। भारत सरकार ने 82 देशों के साथ ऐसी संधियों पर दस्तखत कर रखे हैं। इनमें मॉरीशस ही नहीं, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, रूस, चीन, ब्रिटेन, बांग्लादेश और नेपालऔरऔर भी