अगर आप शेयरों की ट्रेडिंग में दिलचस्पी रखते हैं तो डब्बा ट्रेडिंग का नाम ज़रूर सुना होगा। हर गैर-कानूनी काम की तरह यह भी हल्के-फुल्के मुंगेरीलाल टाइप लोगों को खूब खींचता है। कोई लिखा-पढ़ी नहीं, रिकॉर्ड नहीं, सारा लेनदेन कैश में, सारी कमाई काली। फिर इनकम टैक्स देने या रिटर्न भरने का सवाल ही नहीं। सारे सौदे स्टॉक एक्सचेंज के बाहर होते हैं तो सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शन का सवाल ही नहीं उठता। साथ ही कोई दिक्कत आने याऔरऔर भी

जिस तरह सियारों के झुंड में पड़ा शेर सियार नहीं बन जाता, कौओं के झुंड में फंसा हंस कौआ नहीं बन जाता, वैसे ही निवेश-निवेश के शोर में आम भारतीय निवेशक ट्रेडर से निवेशक नहीं बन सकता। अभी भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की जो स्थिति है, उसमें उसे ऐसा बनना भी नहीं चाहिए। पांच साल के ऊपर का निवेश किसी म्यूचुअल फंड की लांग टर्म इक्विटी स्कीम में और उससे पहले शुद्ध ट्रेडिंग। आज क्या हैं ट्रेडिंग केऔरऔर भी

तंत्र के भीतर तंत्र। सत्ता के समानांतर सत्ता। भारतीय समाज व अर्थतंत्र में ऊपर-ऊपर दिख रही धाराओं के नीचे न जाने कितनी धाराएं बह रही हैं। ये विलुप्त सरस्वती भी हो सकती हैं और घातक कर्मनाशा भी। सहारा समूह ऐसी ही एक अनौपचारिक धारा का नाम है। धंधा तो है लोगों से पैसे जुटाना। लेकिन तरीका आम बैंकिंग से एकदम अलग। धंधे पर कई-कई परतों के परदे। तरह-तरह की बातें। कुछ भी पारदर्शी नहीं। पारदर्शिता के नामऔरऔर भी

आम निवेशक ज़रा-सा मौका मिलते ही म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से तौबा कर ले रहे हैं। अभी बीते सितंबर महीने में उन्होंने इन इक्विटी स्कीमों से 3306 करोड़ रुपए निकाले हैं। यह जानकारी म्यूचुअल फंडों के साझा मंच, एम्फी की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों में दी गई। ये आंकड़े तैयार तो शुक्रवार, 5 अक्टूबर को ही कर लिए गए थे। लेकिन जारी इन्हें सोमवार को किया गया। किसी भी एक महीने में म्यूचुअल फंडों कीऔरऔर भी

देश का निर्यात वित्त वर्ष 2011-12 में भले ही 20.94 फीसदी बढ़कर 303.72 अरब डॉलर पर पहुंच गया हो। लेकिन साल के आखिरी महीने मार्च 2012 में निर्यात में साल 2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद पहली बार कमी दर्ज की गई है। मार्च में हमारा निर्यात 5.71 फीसदी घटकर 28.68 अरब डॉलर पर आ गया है। दूसरी तरफ मार्च में हमारा आयात 24.28 फीसदी बढ़कर 42.59 अरब डॉलर रहा है। इस तरह मार्च में हुआऔरऔर भी

कहा जा रहा है कि एफआईआई दुखी हैं। फंड मैनेजर परेशान हैं। हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। गार (जनरल एंटी एवॉयडेंस रूल) और वोडाफोन जैसे सौदों पर पिछली तारीख से टैक्स लगाने से उनको भ्रमित कर दिया है। इस साल जनवरी से मार्च तक हर महीने भारतीय शेयर बाजार में औसतन तीन अरब अरब डॉलर लगानेवाले एफआईआई ठंडे पड़ने लगे हैं। सेबी के मुताबिक उन्होंने अप्रैल में अभी तक इक्विटी बाजार में 10.69 करोड़ डॉलर काऔरऔर भी

देश के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज, बीएसई ने पर्यावरण रक्षा के प्रति देश के कॉरपोरेट जगत की परवाह को दर्शानेवाला सूचकांक, ग्रीनेक्स के नाम से लांच किया है। भारत में अपनी तरह के इस पहले सूचकांक में कुल 20 कंपनियां शामिल हैं। इस सूचकांक की औपचारिक शुरुआत बुधवार को कॉरपोरेट कार्य मंत्री वीरप्पा मोइली ने बीएसई परिसर में आयोजित एक समारोह में की। बीएसई ने इस सूचकांक का निर्धारण जर्मन सरकार के सहयोग से चलाई जा रहीऔरऔर भी

सुप्रीम कोर्ट ने सिंगापुर में बैठकर भारत में सर्वे के नाम पर जालबट्टा फैलानेवाली कंपनी स्पीक एशिया को निर्देश दिया है कि वह दो हफ्ते के भीतर 1300 करोड़ रुपए उसके पास जमा करा दे। साथ ही कंपनी को निवेशकों की पूरी जानकारी भी अदालत को सौंपनी होगी। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की खंडपीठ ने मंगलवार को करीब 115 निवेशकों के एक समूह की याचिका पर यह फैसला सुनाया। सुनवाई के बाद कोर्टऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी सरकार को उन 500 से ज्यादा कंपनियों के नाम उपलब्ध कराएगी जिन्होंने सामूहिक निवेश योजना (सीआईएस) के नियमों को तोड़ते हुए निवेशकों से भारी धन जुटाया है। सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट (पीटीआई) के संवाददाता को बताया कि ऐसी कंपनियों के निदेशकों के नाम भी कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (एमसीए) को दिए जाएंगे ताकि इन कंपनियों और लोगों को किसी नई कंपनी के साथ जुड़ने से रोका जाऔरऔर भी

सुप्रीम कोर्ट में सहारा समूह और पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी का मुकदमा लंबा खिंचता जा रहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की दो कंपनियों – सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन (वर्तमान नाम – सहारा कमोडिटी सर्विसेज कॉरपोरेशन) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन से कहा है कि वे तीन हफ्ते में तय कर लें कि ओएफसीडी (ऑप्शनी फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) के 2.3 करोड़ निवेशकों के धन को कैसे सुरक्षित करेंगी। इनमें से अधिकांश निवेशकऔरऔर भी