हमारी सोच यकीनन एकतरफा हो सकती है। लेकिन बाज़ार कभी एकतरफा नहीं होता। हम जब कोई शेयर खरीदने की सोचते हैं, तभी किसी को लगता है कि यह अब और नहीं बढ़ेगा, इसलिए इसे बेच देना चाहिए। इसी तरह बेचने वक्त भी सामने कोई न कोई खरीदार रहता है। यिन-यांग की इसी जोड़ी से सृष्टि ही नहीं, बाज़ार भी चलता है। एक सही तो दूसरा गलत। निरपेक्ष कुछ नहीं। जिसने कमाया, बाज़ी उसकी। अब शुक्र का ट्रेड…औरऔर भी