लोग अक्सर सोचते हैं क्योंकि कम लोग ही ट्रेडिंग में कामयाब होते हैं इसलिए इससे पैसे कमाने की कोई बहुत ही जटिल प्रक्रिया होती होगी। तमाम दुस्साहसी लोग खुद आजमाने और जमकर घाटा खाने के बाद यह राय बनाते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि हम समझ जाएं तो ट्रेडिंग एकदम सीधी-सरल चीज है। उलझने के लिए बहुत सारे जाल ज़रूर है। पर भाव ही सारा रहस्य खोलकर बहुत कुछ कह जाता है। अब मंगल की विजय…औरऔर भी

घरेलू अर्थव्यवस्था से अच्छी खबरें आ रही हैं। पहले थोक और रिटेल मुद्रास्फीति जून में घट गई। अब देश का निर्यात जून में 10.22% बढ़ गया। इससे पहले अप्रैल में निर्यात 5.26% और मई में 12.4% बढ़ा था। लेकिन बाहर की खराब खबर यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की प्रमुख ने कहा है कि रोज़गार की स्थिति सुधरती रही तो वहां ब्याज दरें बढ़ सकती हैं। इससे एफआईआई वापस जा सकते हैं। अब बुधवार की बुद्धि…औरऔर भी

हम शेयर बाज़ार को ललचाई नज़रों से देखते हैं। हमें लगता है, वहां खटाखट नोट बनाए जा सकते हैं। लेकिन सोचिए! ये नोट छापता कौन है? रिजर्व बैंक। ज्यादा नोट जब कम स्टॉक्स का पीछा करते हैं तो बाज़ार चढ़ जाता है। इसी तरह के चक्र में अमेरिका में जनवरी 2013 से अब तक S&P-500 सूचकांक 30% बढ़ा है। न कमाया, न बचाया। 4% ब्याज पर कर्ज उठाकर लगाया और शुद्ध 26% बनाया। अब गुरुवार का मर्म…औरऔर भी

प्रवर्तकों से मिलकर खेल करनेवाले इनसाइडर ट्रेडरों को छोड़ दें तो शेयर बाज़ार में रिटेल और प्रोफेशनल, दो ही तरह के ट्रेडर आपस में भिड़ते हैं। प्रोफेशनल ट्रेडर ज्यादा समय व संसाधन लगाता है तो उसकी स्थिति बेहतर होती है। लेकिन वो छोटे सौदों को हाथ नहीं लगा सकता। रिटेल ट्रेडर ऐसे कई मसलों में उस पर भारी पड़ता है। रिटेल ट्रेडरों को इन खासियतों को समझकर अपनी ट्रेडिंग रणनीति बनानी चाहिए। अब देखें बुधवार की धार…औरऔर भी

हमारे या आप जैसे लोगों की औकात नहीं कि बाज़ार तो छोड़िए किसी अदने से स्टॉक की चाल बदल सकें। हमारी मांग से बाज़ार का बाल भी बांका नहीं होता। इसलिए जब हम मांग-सप्लाई की बात करते हैं तो उसका सीधा-सा मतलब होता है बैंक, बीमा, म्यूचुअल फंडों, एफआईआई और बड़े ब्रोकरेज़ हाउसों की मांग जो हर दिन लाखों नहीं, करोड़ो में खेलते हैं। उनकी चाल को पहले से भांपना असली चुनौती है। अब अभ्यास शुक्रवार का…औरऔर भी

टेक्निकल एनालिसिस या चार्टिंग का मूल मकसद है किसी खास समय तक खरीदने और बेचने वालों के बीच का संतुलन देखकर बाज़ार पर हावी भावना को समझना। लेकिन यह थोड़े वक्त, बहुत हुआ तो महीने या दो महीने के लिए फिट बैठता है। लंबे समय में कंपनी व अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स ही शेयरों के भाव तय करते हैं। इसलिए साल दो साल के निवेश पर टेक्निकल का फंदा नही कसना चाहिए। अब देखते हैं गुरु का बाज़ार…औरऔर भी

ट्रेडिंग में नौसिखिया लोगों को हाथ नहीं डालना चाहिए। यह उन लोगों के लिए है जो बाज़ार की चाल-ढाल और टेक्निकल एनालिसिस को अच्छी तरह समझते हैं। उनके दिमाग में साफ होना चाहिए कि बाज़ार में कौन-कौन सी शक्तियां हैं जिनकी हरकत भावों को उठा-गिरा सकती है। बाज़ार में संतुलन का पूरा नक्शा उनके दिमाग में साफ होना चाहिए। चार्ट में लोगों की भावनाओं को पढ़ सकने की कला उन्हें आनी चाहिए। अब देखें गुरु की चाल…औरऔर भी

यह बात कतई समझ में नहीं आती कि हमारे यहां केवल रिटेल निवेशकों को ही इंट्रा-डे ट्रेडिंग की इजाज़त है जबकि संस्थागत निवेशकों को इसकी मनाही है। आखिर क्यों आम निवेशकों के हितों की हिफाज़त के लिए बनी सेबी ने शेयर बाज़ार की सबसे जोखिम भरी गुफा को मासूम निवेशकों के लिए खोल रखा है और शातिर संस्थाओं को बचा रखा है? यह निवेशकों की कैसी अग्निपरीक्षा है आखिर? इस आग से बचते हुए बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

जिस तरह कुशल पहलवान विरोधी के वजन को ही उसे धूल चटाने के लिए इस्तेमाल करता है, उसी तरह बाज़ार ट्रेडर की हर छिपी कमज़ोरी का इस्तेमाल उसे पटखनी देने के लिए करता है। लालची ट्रेडर अपनी औकात से कहीं ज्यादा बड़ी खरीद से पिटते हैं। डरपोक ट्रेडर जीतती बाज़ी तक छोड़कर भाग निकलते हैं। वहीं, आलसी ट्रेडर बाज़ार के पसंदीदा शिकार हैं। वो उन्हें अपनी तेज़ी से मारता है। अब करें ट्रेडिंग की साधना का अभ्यास…औरऔर भी

की-बोर्ड से नज़र उठाकर ज़रा सोचिए कि आप शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग इसलिए करना चाहते हैं ताकि नोट कमा सकें। लेकिन इसके लिए ट्रेड करने का हुनर सीखना पड़ेगा। तो, नोट कमाना पहले या सीखना पहले? हमारा ही नहीं, सारे अनुभवी लोगों को मानना है कि जल्दी-जल्दी नोट बनाने के चक्कर में पड़े तो मुंह की खाएंगे। ट्रेडिंग की बारीकियां समझ लें, नोट अपने-आप आने लगेंगे। छोटे ट्रेड से बड़ी सीख। परखें कुछ ऐसे ही छोटे ट्रेड…औरऔर भी