चलो! आंखें बंदकर अनंत यात्रा पर निकल जाएं। अंदर की प्रकृति को बाहर की प्रकृति से एकाकार हो जाने दें। पेड़ों की फुनगियों, पहाड़ों के छोर को छूते हुए बादलों के फाहों पर उड़ने दें। मृत्यु का अभ्यास करने दें।और भीऔर भी

न आदि है, न अंत है। वह अनंत है। इस अनंत समय को कैसे नाथा जाए? लेकिन हमने इसे नाथ लिया। समय भले ही अनवरत बहता रहे, लेकिन दिन, महीने, साल में हम उसका हिसाब रखते हैं। नई यात्रा शुरू करते हैं।और भीऔर भी