स्पीक एशिया अब भी खुद को एशिया में संप्रभु उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा समुदाय बताती है, लेकिन धीरे-धीरे वह खुद को रोजमर्रा के इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बेचनेवाली फर्म के रूप में पेश करने लगी है। इस बीच यह भी खुलासा हुआ है कि घोषित तौर सर्वे के जिस काम से वह कमाई कर रही थी, वह असल में कभी था ही नहीं। वह तो बस लोगों को फंसाने का एक बहाना था और वह मल्टी लेवलऔरऔर भी

स्पीक एशिया का सिंगापुर में मुख्य बैंक खाता फ्रीज हो चुका है। भारत में उसका अपना कोई पक्का पता-ठिकाना है नहीं तो उसके अपने नाम में कोई बैंक खाता भी नहीं है। लेकिन आयकर विभाग ने स्पीक एशिया से एजेंट, फ्रेंचाइजी या किसी अन्य रूप में जुड़े पूरे तंत्र की जांच शुरू कर दी है। बावजूद इसके स्पीक एशिया आसानी ने भारत का धंधा छोड़ने को तैयार नहीं है और अपने लगभग 20 लाख पैनेलिस्टों को शांतऔरऔर भी

स्पीक एशिया ने इतना झूम-झामकर विज्ञापन नहीं किए होते तो शायद उसके फ्रॉड पर किसी की नजर नहीं जाती क्योंकि हमारे यहां के कानून इतने लचर हैं कि लूटनेवाले आराम से पतली गली से निकलकर जाते हैं। खुद स्पीक एशिया के सीईओ मनोज कुमार का कहना है कि भारत में 4200 मल्टी लेवल मार्केटिंग (एमएलएम) कंपनियां सक्रिय हैं जिसकी खास वजह है यहां के कायदे-कानून का कमजोर होना। लचर कानूनों के कारण ही नब्बे के दशक मेंऔरऔर भी

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उनको इतनी मिर्ची लग जाएगी, अंदाजा नहीं था। दुख इस बात का है कि छल-प्रपंच में लगी स्पीक एशिया की तरफदारी ऐसे लोग कर रहे हैं जो बड़ी ईमानदारी व मेहनत से घर-परिवार चलाते हैं। मानस कुमार भले ही स्पीक एशिया के घोटालेबाज टीम से सदस्य हों, लेकिन महेश, हरप्रीत, रंजीत, अजीत, धीरज रावत, नितेश और ‘बेनामी’ झलक तक हमारे-आप जैसे लोग हैं जो अपनी व अपनों की जिंदगी में खुशियां बिखेरना चाहते हैं। झलक की यहऔरऔर भी

कुछ ही दिनों पहले स्पीक एशिया की तरफ से अपने सभी पैनलिस्ट को बताया गया है कि, “12 मई तक की सभी कैश रिक्वेस्ट उनके बैंक खाते में क्रेडिट की जा चुकी होंगी और बाकी 21 मई तक की कैश रिक्वेस्ट हमारे बैंक ने प्रोसेस कर ली है और अगले हफ्ते किसी वक्त वह आपके खाते में क्रेडिट हो जाएगी।” लेकिन स्पीक एशिया का यह दावा बहुत मुमकिन है कि पूरा ही न हो क्योंकि कई बैंकोंऔरऔर भी