देश के कोने-कोने में छोटे-छोटे कस्बों व शहरों के लोग रिस्क तो लेते है। तभी तो स्पीक एशिया या सारधा जैसी फर्में हज़ारों-हज़ार करोड़ जुटा लेती हैं। लेकिन सरकार अंदर से नहीं चाहती कि लोग ऐसा रिस्क लें जिसमें उनका और देश के औद्योगिक विकास, दोनों का भला हो क्योंकि ऐसा होगा तो डाकघर व बैंकों में रखी हमारी बचत का बड़ा हिस्सा उसे सस्ते कर्ज के रूप में नहीं मिलेगा। आज तथास्तु में एक मिड-कैप कंपनी…औरऔर भी