यह कैसी विडम्बना है कि शेयर बाज़ार हमारा, लेकिन कमाकर ले जा रहे हैं विदेशी। यकीनन, बाज़ार में तेज़ी की एक खास वजह है कि देश में आ रहा विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई)। लेकिन उनका लगाया धन बढ़ रहा है आम भारतीय निवेशकों के धन से, जो सीधे-सीधे रिटेल निवेश व ट्रेडिंग के साथ ही परोक्ष रूप से बाज़ार में म्यूचुअल फडों व बीमा कंपनियों के ज़रिए आ रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में रिसर्च फर्मऔरऔर भी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूर की कौड़ी फेंकने में उस्ताद हैं। उनकी यह प्रतिभा चुनावों के मौजूदा मौसम में कुछ ज्यादा ही सिर चढ़कर बोल रही है। 23 बाद 2047 में भारत को विकसित देश बनाने की कौड़ी क्या कम थी जो राजस्थान के चुरु और उत्तर प्रदेश के सहारनरपुर जैसी छोटी जगहों की चुनावी रैलियों में जनता को हांक रहे हैं कि वे भारत की अर्थव्यवस्था को दस साल में जिस ऊंचाई पर ले गए हैं, उसकीऔरऔर भी

पढ़-लिखकर काम-धंधा पाने की हमारे नौजवानों की सहज व वाजिब ख्वाहिश मिट्टी में मिलती जा रही है। सबसे ज्यादा बेरोज़ागर वे युवा हैं जो ग्रेजुएट है। इसमें भी लड़कियों का हिस्सा लड़कों से लगभग पांच गुना है। यह स्थिति तब है, जब हमारी श्रमशक्ति का करीब 90% हिस्सा आज भी असंगठित क्षेत्र में है या स्वरोजगार में लगा है जहां किसी तरह की कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं। दिक्कत यह है कि सरकार इसका कोई ठोस उपा करनेऔरऔर भी

मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन का यह मानना बेहद खतरनाक है कि सरकार बेरोज़गारी जैसी समस्या नहीं सुलझा सकती। अगर यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या भाजपा के किसी अन्य बड़े नेता ने कही होती तो राजनीतिक तूफान मच गया होता। पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने तो नागेश्वरन के बयान के बाद कह ही दिया कि भाजपा को कुर्सी खाली कर देनी चाहिए, कांग्रेस के पास बेरोज़गारी के मसले को सुलझाने की ठोस योजना हैऔरऔर भी

यह सच्चाई जानकर भारत के हर देशभक्त का कलेजा चाक हो जाएगा कि हमारी बेरोज़गार आबादी का लगभग 83% हिस्सा युवाओं का है। यह वे नौजवान युवक व युवतियां हैं जिन्हें भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड कहा जाता है और जिसके दम पर भारत के बहुत तेज़ी से लम्बे समय तक विकास करते रहने की भविष्यवाणी की गई थी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) द्वारा बीते मंगलवार को जारी ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024’ मेंऔरऔर भी

हमारे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर व शिकागो यूनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफेसर रघुराम राजन का कहना है कि भारत का 2047 तक विकसित अर्थव्यवस्था बन पाना मुश्किल है और इस लक्ष्य की बात करना भी तब बकवास है जब देश के इतने सारे बच्चों के पास हाईस्कूल तक की शिक्षा नहीं है और डॉप-आउट दरें बहुत ज्यादा हैं। इस इंटरव्यू के बाद बहुत सारे सरकारी अर्थशास्त्री उनके पीछे पड़ गए और चिल्लाने लगे कि राजन भारतऔरऔर भी

नए वित्त वर्ष 2024-25 का आगाज़। नए हफ्ते का पहला दिन। ऐसा संयोग कभी-कभी ही मिलता है। हमें इसे अप्रैल-फूल के चक्कर में व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, बल्कि सत्य के सफर का प्रस्थान बिंदु बना लेना चाहिए। हम महज शेयर बाज़ार के निवेशक या ट्रेडर ही नहीं, बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था के सबसे प्रतिबद्ध प्रेक्षक भी हैं। कारण, निवेशक व ट्रेडर के रूप में हमारा पूरा वजूद ही अर्थव्यवस्था के हाल पर टिका हुआ है। इसलिए सारे हाइपऔरऔर भी

मोदी सरकार की नीतियों और नीयत को परखने के बाद विशेषज्ञ विदेशी निवेशकों को यही सलाह दे रहे हैं कि आप भारतीय शेयर बाज़ार से कमाने के लिए थोड़े समय का निवेश ज़रूर करते रहें, लेकिन खुद उद्योग-धंधों में पूंजी लगाने का जोखिम न उठाएं। कारण, मोदी सरकार अपने मुठ्ठी भर चहेतों का हित साधने के लिए कभी भी उनके धंधे पर लात मार सकती है। साथ ही वे अभी शेयर बाज़ार के निवेश को लेकर भीऔरऔर भी

देश में होनेवाले विदेशी निवेश की आशावादी घोषणाओं में कोई कमी नही है। लेकिन वास्तविक निवेश छिटकता जा रहा है। मसलन, जुलाई 2023 में ताइवान के फॉक्सकॉन ग्रुप ने वेदांता समूह के साथ लगाए जानेवाले 19.5 अरब डॉलर के सेमी-कंडक्टर संयुक्त उद्यम से हाथ पीछे खींच लिया। अभी पिछले ही महीने फरवरी में सोनी ने ज़ी एंटरटेनमेंट के साथ विलय का 10 अरब डॉलर का करार तोड़ दिया। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में देश मेंऔरऔर भी

आंकड़ों में भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर अच्छी से अच्छी होती जा रही है। पहले अनुमान था कि 31 मार्च 2024 को खत्म हो रहे वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 में हमारा जीडीपी 7.3% बढ़ेगा। फिर दिसंबर 2023 की तिमाही में विकास दर के 8.4% पहुंचने पर पूरे साल का अनुमान बढ़ाकर 7.6% कर दिया। कुछ दिन पहले ही रिजर्व बैंक का नया अध्ययन आया है जिसके मुताबिक जनवरी-मार्च की तिमाही में विकास दर 5.9% के बजाय 7.2% रहऔरऔर भी