युद्ध जारी है। रूस यूक्रेन में अपनी समर्थक सरकार बनाए बिना पीछे नहीं हटनेवाला। नाटो ने भी टैंक भेजने शुरू कर दिए हैं। अब शेयर बाज़ार का क्या होगा? पहले दिन जमकर गिरा। अगले दिन उठ गया। अब क्या होगा? गिरेगा या उठेगा! लेकिन हां या ना, सही या गलत और कंप्यूटर की भाषा में कहें तो शून्य व एक की बाइनरी अलावा भी दुनिया में बहुत होता है। सोचने की आसानी से लिए यकीनन यह तरीकाऔरऔर भी

संवत 2073 बीत गया। नया संवत 2074 शुरू हो रहा है। सभी शुभलाभ के लिए शुभ शुरुआत की कामना रखते हैं। यह बहुत अच्छी बात है और सहज मानव स्वभाव का हिस्सा है। लेकिन वित्तीय बाज़ार की ट्रेडिंग में जहां हर दिन नहीं, हर पल हालात व भाव बदलते हों, वहां क्या कोई शुभ शुरुआत अपने-आप में पर्याप्त हो सकती है? यहां तो बराबर ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ वाली स्थिति रहती है। इसी फ्रेम में हमें मुहूर्तऔरऔर भी

जो ठहरा वो मरा। जो चलता रहा, वही ज़िंदा है। सदियों पहले बुद्ध ने जीवन में निरतंर परिवर्तन की कुछ ऐसी ही बात कही थी। जो व्यक्ति या संस्थान समय के हिसाब से बदल नहीं पाता, वो खत्म हो जाता है। लेकिन ‘अर्थकाम’ ने तो न मिटने की कसम खा रखी है तो बनने से लेकर अब तक कई तरह के उतार-चढ़ाव देखें, झंझावात देखे। मगर, हर बार वित्तीय साक्षरता और आर्थिक सबलता के अधूरे मिशन कोऔरऔर भी

आप बाज़ार का जबरदस्त विश्लेषण कर लें, शानदार स्टॉक्स चुन लें, भयंकर रिसर्च कर लें, तब भी ट्रेडिंग की जंग में जीत की कोई गारंटी नहीं। लगातार पचास मुनाफे के सौदे, पर एक की सुनामी सब बहा ले जाएगी। अच्छा ट्रेडिंग सिस्टम बड़े काम का है। पर बाज़ार अक्सर सिस्टम से बाहर छटक जाता है। स्टॉप लॉस बांधने में टेक्निकल एनालिसिस से मदद मिलेगी। इससे घाटा कम होगा, पर मिटेगा नहीं। घाटा मिटाने का एकमेव सूत्र हैऔरऔर भी

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हर कोई अपने धन को अधिक से अधिकतम करना चाहता है। लेकिन कर कौन पाता है? किसान और ईमानदार नौकरीपेशा इंसान तो हर तरफ से दबा पड़ा है। अपने धन को अधिकतम कर पाते हैं एक तो नेता और नौकरशाह, जो हमारे द्वारा परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से दिए गए टैक्स की लूट और बंदरबांट में लगे हैं। वे अपनी हैसियत और पहुंच का फायदा उठाकर जनधन को जमकर लूटते हैं और देखते ही देखते करोड़पति सेऔरऔर भी

सरकार ने शेयर बाजार को बढ़ावा देने के लिए इक्विटी फ्यूचर्स पर सिक्यूरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) 0.017 फीसदी से घटाकर 0.01 फीसदी कर दिया है। लेकिन कैश सेगमेंट या डिलीवरी वाले सौदों पर एसटीटी की मौजूदा दर 0.10 फीसदी को जस का तस रखा गया है। जानकार मानते हैं कि इससे शेयर बाज़ार में वास्तविक निवेश की जगह सट्टेबाज़ी को बढ़ावा मिलेगा। वैसे भी इस समय कैश सेगमेंट का कारोबार डेरिवेटिव सौदों के आगे कहीं नहीं टिकता।औरऔर भी

आम निवेशक ज़रा-सा मौका मिलते ही म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों से तौबा कर ले रहे हैं। अभी बीते सितंबर महीने में उन्होंने इन इक्विटी स्कीमों से 3306 करोड़ रुपए निकाले हैं। यह जानकारी म्यूचुअल फंडों के साझा मंच, एम्फी की तरफ से जारी ताजा आंकड़ों में दी गई। ये आंकड़े तैयार तो शुक्रवार, 5 अक्टूबर को ही कर लिए गए थे। लेकिन जारी इन्हें सोमवार को किया गया। किसी भी एक महीने में म्यूचुअल फंडों कीऔरऔर भी

फरवरी महीने में शेयर बाजार की गति को दिखानेवाला सूचकांक, निफ्टी 4 फीसदी बढ़ गया। लेकिन इस बढ़त से म्यूचुअल फंडों की आस्तियां (एयूएम) महज 2 फीसदी बढ़ी हैं। नोट करें कि यह म्यूचुअल फंड स्कीमों में आए निवेश का नहीं, बल्कि बाजार के बढ़ने से उनके निवेश में हुई बढ़त या मार्क टू मार्केट उपबल्धि को दर्शाता है। बाजार के बढ़ने की वजह फरवरी में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) की तरफ से शेयरों में किया गयाऔरऔर भी

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की बड़ी मुश्किल आसान कर दी है। अब शेयर बाजारों में लिस्टेड कोई भी कंपनी न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक शेयरधारिता हासिल करने के लिए सीधे अपने शेयर बेच सकती है। इसके लिए उसे कोई पब्लिक इश्यू लाने की जरूरत नहीं होगी। वह ऐसा इंस्टीट्यूशन प्लेसमेंट प्रोग्राम (आईपीपी) या स्टॉक एक्सचेंजों के जरिए ब्रिकी प्रस्ताव लाकर कर सकती है। सेबी के बोर्ड ने मंगलवार को अपनी बैठक मेंऔरऔर भी

साल 2012 में बाजार का पहला दिन। हर ब्रोकरेज हाउस व बिजनेस अखबार नए साल के टॉप पिक्स लेकर फिर हाजिर हैं। चुनने के लिए बहुत सारे विकल्प सामने हैं। ऐसे में आपको और क्यों उलझाया जाए! हालांकि अगर साल 2011 के टॉप पिक्स का हश्र आपके सामने होगा तो शायद आपने इस हो-हल्ले को कोई कान ही नहीं दिया होगा। इन पर ध्यान देना भी नहीं चाहिए क्योंकि ढोल, झांझ, मजीरा व करताल लेकर यह मंडलीऔरऔर भी