हम सब अपने ही नाथ हैं। खुद ही सब करना या पाना है। कहते हैं कि भगवान सभी का नाथ है। लेकिन भगवान तो महज एक मान्यता है। मन का धन है। अन्यथा तो हम सभी अनाथ हैं। कहा भी गया है कि मानिए तो शंकर हैं, कंकर हैं अन्यथा।और भीऔर भी

मां-बाप की उंगली, घर की छांह, कभी नौकरी का साया और फिर भगवान का आसरा। इन बैसाखियों से कभी तो तौबा कीजिए। कभी तो एकदम अनाथ होकर देखिए कि आपका अपना शक्ति-पुंज क्या है!और भीऔर भी