संविधान कोई कविता, कहानी या उपन्यास नहीं है जिसे कोई एक व्यक्ति अपने दम पर लिख सके। लेकिन अपने यहां दलितों की मासूम भावनाओं को फायदा उठाने के लिए ऐसा राजनीतिक पाखंड खड़ा किया गया है कि हर किसी की बोलती बंद है।और भीऔर भी