विज्ञापन और भगवान
भगवान और धर्म के नाम पर खुल्लमखुल्ला लूट सदियों से जारी है। कभी राजा-महाराजा से लेकर पंडित, पादरी और मुल्ला यह काम करते थे। इतने अनुष्ठान कि लोगों का तर्क तेल लेने चला जाए। अब बाजार के जमाने में वही काम विज्ञापन करने लगे हैं।और भीऔर भी
ज्ञान की पूर्वशर्त
उचाट रहने से सच तक नहीं पहुंचा जा सकता है, पंडित नहीं बना जा सकता है। इसके लिए जुड़ना जरूरी है, प्रतिबद्धता जरूरी है, प्रेम जरूरी है, डूबना जरूरी है। निर्लिप्त रहकर ज्ञानवान नहीं बना जा सकता।और भीऔर भी
बाजार करे कदमताल, कैसे चलें चाल!
सदियों पहले बौद्ध भिक्षुओं का रिवाज था कि वे बारिश के चार महीनों में यायावरी छोड़, कहीं एक जगह ठेहा जमाकर बैठकर जाते थे। लगता है हम निवेशकों को भी कुछ महीनों के लिए हाथ-पैर बांधकर, लेकिन दिमाग खोलकर बैठ जाना चाहिए। असल में बाजार कहीं जा नहीं रहा। बस कदमताल किए जा रहा है। जानकारों का कहना है कि अभी जिस तरह ब्याज दरों के बढ़ने का सिलसिला चल रहा है, आर्थिक विकास दर में सुस्तीऔरऔर भी