गिरते हैं घुड़सवार ही मैदाने जंग में। किरण मजूमदार-शॉ की कंपनी बायोकॉन को करीब हफ्ते भर पहले तगड़ा झटका लगा, जब फाइज़र ने उसके बनाए इंसूलिन उत्पादों को अमेरिका में बेचने का करार रद्द कर दिया। दोनों की तरफ से जारी साझा बयान में कहा गया, “बायोसिमिलर बिजनेस में अपनी अलग प्राथमिकताओं के चलते कंपनियां इस नतीजे पर पहुंची हैं कि स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने में ही उनका सर्वोपरि हित है।” धंधे में रिश्ते बनते हैं,औरऔर भी

ट्रेडिंग के लिए हम ऐसे स्टॉक्स चुनते हैं जो खरीद-फरोख्त के असर से घट-बढ़ सकते हैं, जबकि निवेश में हम ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जिनका धंधा पुख्ता आधार पर खड़ा हो और जिसमें बढ़ने की भरपूर गुंजाइश हो। दिक्कत है कि हममें से 99 फीसदी लोग ट्रेडिंग की मानसिकता रखते हैं। छाया के पीछे भागते हैं और माया गंवाते रहते हैं। यह रुख न तो देश की अर्थव्यवस्था और न ही हमारे दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य केऔरऔर भी

हमें इस बात को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि सेल मार्केटिंग की एक बाजीगरी है जिसके चलिए उपभोक्ताओं की मानसिकता को भुनाया जाता है। शेयर बाजार में भी हर साल इस तरह की ‘क्लियरेंस’ सेल तीन बार लगती है, जिसमें बेचनेवाले अपना माल निकालते हैं। पहली बजट के आसपास, दूसरी दीवाली पर और तीसरी नई साल की शुरुआत पर। सेल में लोगबाग टूटकर भाग लेते हैं। जब उन्हें कोई रोक नहीं सकता तो आपको कोईऔरऔर भी

ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज में निवेश की सलाह हमने सबसे पहले करीब नौ महीने पहले 15 जून 2010 को दी थी। उस वक्त यह शेयर बहुत उछलकूद मचा रहा था। महीने भर में ही 40 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 445 रुपए पर पहुंच चुका था। इस समय भी इसमें तेज हरकत है। 10 फरवरी को इसने दिसंबर तिमाही के नतीजे घोषित किए, तब इसका बंद भाव 493.95 रुपए था। उसके बाद करीब एक महीने में यह 14.44 फीसदी बढ़करऔरऔर भी

यूं तो महज कागज की एक पट्टी होता है लिटमस। लेकिन द्रव में डालते ही खटाक से बता देता है कि वो अम्ल है या क्षार। काश! शेयर बाजार के लिए भी ऐसा कोई इकलौता लिटमस टेस्ट होता जो बता देता कि कोई कंपनी निवेश के काबिल है या नहीं। मुश्किल यह है कि यहां वर्तमान को ही नहीं, भविष्य को भी परखा जाता है। कई टेस्ट हैं। लेकिन वे आंशिक सच ही दिखाते हैं। अगर हमऔरऔर भी

कोई मानें या न माने, हम अब भी कहीं न कहीं दलितों व मुस्लिमों के प्रति सवर्ण और हिंदू मानसिकता से ग्रस्त हैं। नहीं तो क्या वजह है कि जिस मिर्ज़ा इंटरनेशनल का धंधा पिछले तीन सालों में 14.06 फीसदी और शुद्ध लाभ 115.60 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा हो, उसका शेयर मार्च 2008 से लेकर मार्च 2012 तक घूम-फिरकर 20 रुपए के आसपास अंकड़ा क्यों पड़ा है? वैसे, इधर अचानक इस स्टॉक में सक्रियताऔरऔर भी

बैक्टीरिया व वायरस हर तरफ फैले रहते हैं। लेकिन जिनके शरीर का एम्यून सिस्टम या प्रतिरोध तंत्र मजूबत रहता है, उनका ये कुछ नहीं बिगाड़ पाते। हां, उनके भी शरीर को बैक्टीरिया व वायरस से बराबर युद्धरत रहना पड़ता है। इसी तरह कंपनियों को भी बराबर बदलते हालात व समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ता है। प्रबंधन तंत्र दुरुस्त हो, नेतृत्व दक्ष हो तो कंपनी हर समस्या के बाद और निखरकर सामने आती है, जबकि प्रबंधन तंत्रऔरऔर भी

चक्र का चक्कर प्रकृति में ही नहीं, शेयर बाजार में भी चलता है। बाजार सीधे नहीं भागता, बल्कि चक्रों में चलता है। जो उठा है, वो और उठने से पहले गिरेगा जरूर। इसे ही करेक्शन कहते हैं। इसी तरह कंपनी अगर मजबूत है और बढ़ रही है तो उसका गिरा हुआ शेयर जरूर बढ़ता है। हां, कंपनी ही अगर डूब रही है तो उसके शेयर को अंततः डूब जाने से ऑपरेटर भी नहीं बचा सकते। इसीलिए जिसऔरऔर भी

सुप्रजीत इंजीनियरिंग है तो स्मॉल कैप कंपनी। इक्विटी 12 करोड़ रुपए है और बाजार पूंजीकरण 240 करोड़ रुपए के आसपास। लेकिन देश में वाहनों के केबल बनानेवाली सबसे बड़ी कंपनी है। वह गाड़ियों के स्पीडोमीटर भी बनाती है। कंपनी के तार विदेश तक फैले हैं। करीब छह साल पहले 2006 में इसने एक ब्रिटिश कंपनी गिल्स केबल्स का अधिग्रहण किया था जिसका नाम अब सुप्रजीत यूरोप लिमिटेड कर दिया गया है। घरेलू बाजार की मांग को पूराऔरऔर भी

कोई समझे या न समझे। हमारा तो यही अंदाज़ है। जयश्री टी में हमने जो लक्ष्य 30 दिन में हासिल करने की बात कही थी, उसे तीन ट्रेडिंग सत्रों में ही हासिल कर लिया। हमने इसके 99 रुपए पर पहुंचने की बात कही थी। कल यह 99.40 रुपए तक चला गया। हमारा काम है पूरी ईमानदारी से निवेश की सलाह देना और वह काम हम किए जा रहे हैं। हां, बुद्धि और विश्लेषण की सीमा है तोऔरऔर भी