फिराक़ गोरखपुरी की महशूर लाइनें हैं – अब अक्सर चुप-चुप से रहे है, यूं ही कभू लब खोले है; पहले फिराक़ को देखा होता, अब तो बहुत कम बोले है। भारतीय रिजर्व बैंक से रघुराम राजन के जाने के बाद कुछ ऐसी ही कमी कम से कम कुछ महीनों तक तो सालती ही रहेगी। इसलिए नहीं कि वे बिना लाग-लपेट बेधड़क अपनी बात रख देते थे, बल्कि इसलिए कि आज के नौकरशाही तंत्र में उनकी जैसी बौद्धिकऔरऔर भी

सरकार से लेकर कॉरपोरेट जगत के चौतरफा दबाव के बावजूद रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की पांचवी द्वि-मासिक समीक्षा में ब्याज दरों को जस का तस रहने दिया। नतीजतन, बैंक जिस ब्याज पर रिजर्व बैंक से उधार लेते हैं, वो रेपो दर 8 प्रतिशत और जिस ब्याज पर वे रिजर्व बैंक के पास अपना अतिरिक्त धन रखते हैं, वो रिवर्स रेपो दर 7 प्रतिशत पर जस की तस बनी रही। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुरान राजन नेऔरऔर भी

सब कुछ नया-नया। वित्त वर्ष 2014-15 का आगाज़। अभी तक रिजर्व बैंक साल के शुरू में सालाना मौद्रिक नीति पेश किया करता था। फिर उसी के फ्रेम में तिमाही और बीच में मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा पेश करता था। लेकिन समय की गति इतनी बढ़ गई कि रिजर्व बैंक अब हर दो महीने पर मौद्रिक नीति लाना शुरू कर रहा है। आज वित्त वर्ष के पहले दो महीनों की नीति आएगी। अब आज का स्वागतम ट्रेड…औरऔर भी

कल कोल इंडिया और एनटीपीसी दोनों में सुबह-सुबह मीडिया में नकारात्मक खबरें आ गईं। फिर भी कोल इंडिया का शेयर 1.26% और एनटीपीसी का शेयर 2.32% बढ़ गया। इसीलिए हम सावधान करते आए हैं कि आम लोगों को छपी खबरों के आधार पर ट्रेड नहीं करना चाहिए। असल में खबरों के आने और जाहिर होने का जो भी समीकरण है, वो हमारे लिए झांसे जैसा है। भावों में ही हर ऊंच-नीच समाहित है। अब गुरु का बाज़ार…औरऔर भी

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. दुव्वरि सुब्बाराव का तीन साल का कार्यकाल सितंबर में खत्म हो रहा है। इसलिए सरकारी हलकों में उनकी जगह नए गवर्नर को लाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक इस दौड़ में तीन लोगों का नाम सबसे आगे हैं। ये हैं – शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार रघुराम राजन, आर्थिक मामलों के सचिव आर गोपालन और कार्नेल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व वित्त मंत्रालयऔरऔर भी