दिसंबर महीने के दूसरे पखवाड़े में आम लोगों के लिए ऐसे सरकारी बांड जारी कर दिए जाएंगे जिसमें बचत को महंगाई की मार से सुरक्षित रखा जा सकता है। इन बांडों का नाम है इनफ्लेशन इंडेक्स्ड नेशनल सेविंग्स सिक्यूरिटीज – क्यूमुलेटिव (आईआईएसएस-सी)। इन्हें रिजर्व बैंक केंद्र सरकार से सलाह-मशविरे के बाद लांच कर रहा है। शुक्रवार को रिजर्व बैंक ने आधिकारिक जानकारी दी कि इन्हें दिसंबर माह के दूसरे हिस्से में पेश कर दिया जाएगा। बता देंऔरऔर भी

आपने भी देखा होगा कि किसी स्टॉक के बजाय लोगों की आम दिलचस्पी इसमें होती है कि बाज़ार कहां जा रहा है। जैसे कोई मिलने पर पूछता है कि क्या हालचाल है, उसी तरह शेयर बाज़ार से वास्ता रखनेवाले छूटते ही पूछ बैठते हैं कि सेंसेक्स या निफ्टी कहां जा रहा है। चूंकि सेंसेक्स में शामिल सभी तीस कंपनियां निफ्टी की पचास कंपनियों में शामिल हैं। इसलिए हाल-फिलहाल बाज़ार कहां जा रहा है, का मतलब होता हैऔरऔर भी

इधर कुछ दिन दिल्ली में हूं और भांति-भांति के लोगों से मिलना-जुलना चल रहा है। कल शाम फाइनेंस जगत के खास किरदार से मुलाकात हुई। उनका कहना था कि इस बाज़ार में हमारे-आप जैसे रिटेल/आम निवेशकों का कोई भविष्य नहीं। मैंने इधर-उधर की बातें कर उनके अहं का पूरा ख्याल रखा। लेकिन मन ही मन कहा कि अगर हमारा भविष्य नहीं है तो इस देश की अर्थव्यवस्था का भी कोई भविष्य नहीं है। अब बाज़ार की दशा-दिशा…औरऔर भी

हम ज़मीन को छोड़े बगैर आसमान में उड़ना चाहते हैं! कार चलाना आ गया तो मान बैठते हैं कि हवाई जहाज़ भी उड़ा लेंगे। सोने व रीयल एस्टेट को जान लिया तो सोचते हैं कि शेयर बाज़ार और फॉरेक्स बाज़ार पर भी सिक्का जमा लेगे। यह संभव नहीं है क्योंकि भौतिक अर्थव्यवस्था और फाइनेंस की अर्थव्यवस्था में सचमुच ज़मीन आसमान का अंतर है। डिमांड, सप्लाई और दाम का रिश्ता यहां भी है और वहां भी। लेकिन समीकरणऔरऔर भी

लंबे दौर में अच्छे-बुरे का लॉजिक जरूर चलता होगा, लेकिन छोटे समय में शेयर बाज़ार में केवल एक लॉजिक चलता है। वो यह कि डिमांड ज्यादा है कि सप्लाई। इसी के जुड़ा है कि लालच ज्यादा है कि डर। अगर डिमांड या लालच का पलड़ा भारी है तो शेयर के भाव बढ़ेंगे। अगर डर के चलते लोग निकल रहे हैं और सप्लाई ज्यादा है तो शेयर के भाव गिरेंगे। समझदार ट्रेडर इसी नापतौल के बाद दांव चलतेऔरऔर भी

जिस तरह सियारों के झुंड में पड़ा शेर सियार नहीं बन जाता, कौओं के झुंड में फंसा हंस कौआ नहीं बन जाता, वैसे ही निवेश-निवेश के शोर में आम भारतीय निवेशक ट्रेडर से निवेशक नहीं बन सकता। अभी भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर की जो स्थिति है, उसमें उसे ऐसा बनना भी नहीं चाहिए। पांच साल के ऊपर का निवेश किसी म्यूचुअल फंड की लांग टर्म इक्विटी स्कीम में और उससे पहले शुद्ध ट्रेडिंग। आज क्या हैं ट्रेडिंग केऔरऔर भी

लॉटरी खेलनेवाले के कपड़े उतर जाते हैं, बचा-खुचा भी बिक जाता है। लेकिन लॉटरी खिलानेवाला हमेशा चांदी काटता है। इसी तरह शेयर बाज़ार में कानाफूसी और टिप्स पर चलनेवाले कंगाल हो जाते हैं, लेकिन इन टिप्स और कानाफूसियों को चलानेवाले हमेशा मौज करते हैं। शेयर बाजार में स्वार्थी तत्वों या साफ कहें तो ठगों का बड़ा गैंग बैठा है जो टिप्स का जाल फेंककर हम-आप जैसी छोटी मछलियों का शिकार करता है। हमें उनकी बातों के बजायऔरऔर भी

राजीव गांधी इक्विटी सेविंग्स स्कीम की सारी खानापूरी हो चुकी है। 23 नवंबर को वित्त मंत्रालय ने गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया और 6 दिसंबर को पूंजी बाजार नियामक, सेबी ने सर्कुलर जारी कर दिया। इन दोनों को पढ़कर आप स्कीम के सारे नुक्तों से वाकिफ हो सकते हैं। सबसे खास बात यह है कि ये उन बचतकर्ताओं के लिए है जिन्होंने अभी तक शेयर बाजार में निवेश नहीं किया है। हालांकि इसमें वे निवेशक भी शामिलऔरऔर भी

सेंसेक्स आज एक ही झटके में 540 अंक से ज्यादा का गोता लगा गया, जबकि पिछले हफ्ते वह 600 अंकों का धक्का पहले ही सह चुका था। निफ्टी भी 160 से ज्यादा अंक गिरकर 5268.15 तक पहुंच गया। व्यवस्थागत खामी के आई इस जबरदस्त गिरावट ने ट्रेडरों की हालत खराब कर दी है। इसने निस्संदेह रूप से साबित कर दिया है कि बाजार को फंडामेंटल्स के विरुद्ध जाकर जबरदस्ती चढ़ाया गया था और अब नीचे लाया जाऔरऔर भी

बाजार के उस्तादों को जो चाहिए था, आखिरकार उन्हें मिल गया। किसी को बिना कोई चेतावनी दिए, बिना कोई मौका दिए बाजार 600 अंक गिर चुका है जो अपने-आप में अच्छा करेक्शन है। मेरे बहुत-से दोस्त भ्रमित हो गए हैं और बेचनेवालों के खेमे में चले गए। लेकिन मैं अब भी लांग करनेवालों के खेमे में हूं। मेरा मानना है कि बाजार का रुझान तभी पटलेगा जब निफ्टी 5274 के नीचे पहुंच जाएगा। इसलिए तब तक होऔरऔर भी