जो कोई शेयर बाज़ार को औद्योगिकीकरण से काटकर देखता है, वो सच्चाई से बहुत दूर हैं। और, जो भी सच्चाई से दूर रहता है, सच उससे इस अनदेखी की भरपूर कीमत वसूलता है। साथ ही चीजों को संपूर्णता में समझना होता है। सांस लेना और छोड़ना, लहर का उठना और गिरना। ऐसा उतार-चढ़ाव न हो तो जीवन ही न चले। ट्रेडिंग को जीवन की इसी लयताल के साथ जोड़कर समझिए। अब देखें पृष्ठभूमि गुरुवार की और आगे…औरऔर भी