सच है कि खेती में बरक्कत नहीं। नौकरी में भी बरक्कत नहीं, बस गुजारा चल जाता है। दलाल ही हर तरफ चहकते दिखते हैं। पर यह आंशिक सच है। इसी समाज में नारायणमूर्ति जैसे लोग भी हैं। इनफोसिस के शेयरों की बदौलत उनका ड्राइवर भी चंद सालों में करोड़पति बन गया। हमें धंधे में बरक्कत करनेवाली ऐसी कंपनियां ही चुननी होंगी। इनमें निजी कंपनियां भी हैं और सरकारी भी। आज तथास्तु में ऐसी ही एक सरकारी कंपनी…औरऔर भी

बाजार एक नई ऐतिहासिक ऊंचाई पर। घबराइए मत, यह वाक्य अगले दिनों बार-बार सुनने को मिलेगा। अभी तो सेंसेक्स 26,900.30 और निफ्टी 8035 तक उठा है। किसी भी वस्तु की तरह शेयरों के भाव भी तभी बढ़ते हैं जब डिमांड सप्लाई से ज्यादा होती है। फर्क इतना है कि यहां डिमांड उपयोगिता से नहीं, उम्मीदों से बनती है। और, उम्मीदें बनाते हैं एनालिस्ट जिनमें से बहुतेरे ब्रोकरों के पे-रोल पर होते हैं। अब देखें मंगलवार की नब्ज़…औरऔर भी

लंबे समय में शेयरों के भाव कंपनी के फंडामेंटल्स से तय होते हैं। लेकिन छोटे समय में न तो ये बदलते हैं और न ही इनकी खास अहमियत होती है। छोटे समय में सबसे ज्यादा अहम है जोखिम से बचने या रिस्क अवर्जन की मनःस्थिति। इसे नापने का बाकायदा गणितीय फॉर्मूला है। ट्रेडिंग के कुछ मॉडल इसी आधार पर भावी भाव का अनुमान लगाते हैं। मूल बात है संभावनाओं को समझना। अब करते हैं गुरुवार का प्रस्थान…औरऔर भी

सच को सही-सही देख लिया तो समझिए कि किला फतेह। इसीलिए ट्रेडिंग के तमाम गुरु बताते हैं कि सफलता में 95% योगदान होमवर्क और 5% ही अमल का होता है। असली चुनौती सच को सही-सही देखने की है। हमारी पूर्व धारणाएं और भावनाएं हमें सच देखने नहीं देतीं। हम मनमाफिक फॉर्मेशन भावों के चार्ट पर ढूंढ निकालते हैं। बाज़ी फिसल जाती है तो हाथ मलते हैं। अभी तो बनाते हैं ऐतिहासिक शिखर पर पहुंचे बाज़ार में रणनीति…औरऔर भी

रामचरित मानस की यह चौपाई याद कीजिए कि मुनि वशिष्ठ से पंडित ज्ञानी सोधि के लगन धरी, सीताहरण मरण दशरथ को, वन में विपति परी। जीवन और बाज़ार की यही खूबसूरती है कि वह बड़े-बड़े विद्वानों की भी नहीं सुनता। जहां लाखों देशी-विदेशी निवेशकों का धन-मन लगा हो, भाव हर मिनट पर बदलते हों, वहां बाज़ार को मुठ्ठी में करने का दंभ भला कैसे टिकेगा! इसलिए फायदे के साथ रखें घाटे का हिसाब। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

सेंसेक्स तीन साल बाद फिर 21,000 को लांघ गया। लेकिन तब यह चौबीस के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा था, अभी अठ्ठारह पर। तब बुक वैल्यू से चार गुना था, अभी 2.8 गुना। क्या अभी बाज़ार के और उठने की गुंजाइश है? देखेंगे, तब की तब। गंभीर मसला यह है कि तब बाज़ार के टर्नओवर में रिटेल निवेशकों की भागीदारी लगभग आधी थी। अभी एक-तिहाई है। संस्थागत निवेशक हावी हैं बाज़ार पर। फिर, कैसे निकालें राह…औरऔर भी

ट्रेडिंग से पैसा कमाने के लिए किसी भविष्यवाणी की जरूरत नहीं। आपको बस यह जानना है कि ठीक इस वक्त बाज़ार पर हावी कौन है। तेजड़िए या मंदड़िए? इनमें से जो भी सोच हावी है, उसकी ताकत कितनी है? इस जानकारी के दम पर आपको आंकना होगा कि मौजूदा रुझान कब तक चल सकता है। इसके मद्देनज़र आपको भय और लालच से बचते-बचाते अपनी पूंजी को सही से लगाना है। अब चलें सिद्धांत से व्यवहार की ओर…औरऔर भी

जो चीज़ खुदा-न-खास्ता अपनी हो गई, उसे हम कभी फेंक नहीं पाते। पुरानी मशीनें, जूते, कपड़े, बच्चों के खिलौने और न जाने क्या-क्या कहीं कोने-अंतरे में सहेजकर रखते हैं। असल में यह मालिकाने की मानसिक ग्रंथि है, मोह है, जिसे निकालना जरूरी है। इसलिए ट्रेडिंग के लिए कोई शेयर खरीदने से पहले तय कर लें कि कहां निकलना है। नहीं तो लेने के बाद वो गले की हड्डी बन जाएगा। अब बाज़ार की दशा-दिशा और ट्रेडिंग टिप्स…औरऔर भी

बाज़ार वही, शेयर भी वही। एक-सा उठना-गिरना। पर यहां कुछ लोग हर दिन नोट बनाते हैं, जबकि ज्यादातर की जेब ढीली हो जाती है। शेयर बाज़ार की बुनावट ही ऐसी है कि यहां कुछ कमाते हैं, अधिकांश गंवाते हैं। फुटबॉल मैच का उन्माद खोजनेवाले यहां पिटते हैं। काहिलों को बाज़ार खूब धुनता है। वो आपके हर आग्रह-दुराग्रह, कमज़ोरी का इस्तेमाल आपके खिलाफ करता है। सो, रियाज़ से हर खोट को निकालना ज़रूरी है। अब नज़र आज पर…औरऔर भी

रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (आरईसी), भारत सरकार की नवरत्न कंपनी। करीब साढ़े तीन साल पहले फरवरी 2008 में 105 रुपए पर आईपीओ आया था। लेकिन उसी साल वैश्विक मंदी का प्रकोप आ गया। लेहमान संकट के समय इसका शेयर नवंबर 2008 में 53 रुपए तक गिर गया। लेकिन फिर उठा तो साल भर पहले 11 अक्टूबर 2010 को 413.80 रुपए की चोटी तक जा पहुंचा। इसके बाद फिर गिरने लगा तो पिछले महीने 26 अगस्त 2011 को 162.51औरऔर भी