शेयर बाज़ार के मूड का पैमाना बीएसई सेंसेक्स 10 जनवरी 2008 के शिखर 21,206.77 को भेदकर 21,293.88 की नई ऊंचाई हासिल कर चुका है। एक तो महंगाई की औसत दर को 10 फीसदी भी मानें तो सेंसेक्स का असल स्तर 12,251.16 पर है। दूसरे, इसमें शामिल 30 कंपनियों से अलग बीएसई-500 पर नज़र डालें तो मात्र 133 शेयर ही नए शिखर पर हैं। बाकी 367 अब भी पस्त हैं। पेश है इन्हीं में से एक शानदार शेयर…औरऔर भी

सूचकांकों के पैमाने पर देखें तो हमारा शेयर बाज़ार फिर ऐतिहासिक ऊंचाई पर है। सेंसेक्स दिसंबर 2007 और नवंबर 2010 में कमोबेश इन्हीं स्तरों पर था। इसका मतलब यह हुआ कि दिसंबर 2007 में जिसने सेंसेक्स में पैसे लगाए होंगे, आज करीब छह साल बाद उसका रिटर्न शून्य है। 10% मुद्रास्फीति के असर को जोड़ दें तो उसके 100 रुपए आज असल में घटकर 56.45 रुपए रह गए हैं। निवेशक दुखी, ट्रेडर खुश। अब आगाज़ आज का…औरऔर भी

शेयर बाज़ार बढ़ता है। सेंसेक्स और निफ्टी बढ़ते हैं। लेकिन रिटेल निवेशक जहां भी हाथ डाले, घाटा ही खाता है। क्यों? इसलिए कि वो निवेश की अपनी कोई पद्धति या अनुशासन नहीं पकड़ता। बस, औरों की सुनता है। डिविडेंड डार्लिंग में बताते हैं कि चंबल फर्टिलाइजर्स का डिविडेंड यील्ड 5.26% है। नहीं बताते कि यह स्टॉक पांच सालों में 29 से 36 तक ही पहुंचा है। 4.4% का सालाना रिटर्न! दरअसल, मुनाफे के दो अहम पहलू हैं…औरऔर भी

सौ कमाया। सौ गंवाया। रकम बराबर तो कमाने की खुशी और गंवाने का दुख बराबर होना चाहिए। लेकिन हम-आप जानते हैं कि सौ रुपए गंवाने की तकलीफ सौ रुपए कमाने की खुशी पर भारी पड़ती है। इसे निवेश की दुनिया में घाटे से बचने की मानसिकता कहते है। 100 गंवाने का दुख 200 कमाने के सुख से बराबर होता है। इसलिए स्टॉप-लॉस और लक्षित फायदे की लाइन छोटी-बड़ी होती है। मनोविज्ञान का खेल है ट्रेडिंग। अब आगे…औरऔर भी

ट्रेडिंग में कामयाबी के लिए हमें निवेशकों का मनोविज्ञान समझना होगा। इससे एक तो हम खुद गलतियों से बच सकते हैं। गलतियां फिर भी होंगी क्योंकि यह जीने और सीखने का हिस्सा है। दूसरे, इससे हमें पता रहेगा कि खास परिस्थिति में लोगबाग कैसा सोचते हैं। इससे हम ट्रेडिंग के अच्छे मौके पकड़ सकते हैं, दूसरों की गलतियों से कमा सकते हैं क्योंकि यहां एक का नुकसान बनता है दूसरे का फायदा। देखें अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

एफआईआई के जरिए आ रहे ज्यादातर विदेशी धन का स्रोत पेंशन फंड, यूनिवर्सिटी इनडावमेंट और सोवरेन फंड हैं। इनके पास 20 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा जमाधन हैं। ज्यादा रिटर्न पाने के लिए वे भारत जैसे देशों में निवेश करते रहे हैं। अब अमेरिका में ज्यादा ब्याज मिलने की उम्मीद है तो ये अपना धन वहां के बैंकों में लगाएंगे। रिस्क/रिटर्न के इस संतुलन व मानसिकता को समझने की जरूरत है, न कि गरियाने की। अब आगे…औरऔर भी

कोई ब्रेक-आउट की उम्मीद लगाए बैठा हो और अचानक ब्रेक-डाउन हो जाए तो ऐसा तनाव बनता है कि बड़े-बड़ों के पसीने छूट जाएं। दिमाग के न्यूरो-ट्रांसमीटर एक-एक कोशिका तक संदेश भेजने लगते हैं। डोपामाइन, सेरोटोनिन व मेलाटोनिन जैसे रसायनों के स्राव शरीर व मन को शिथिल करने लग जाते हैं। ऐसे में धैर्य और यह भरोसा ही सबसे बड़ा सहारा होता है कि जो हो रहा है, वह स्थाई नहीं। इस वक्त बाज़ार की यही मांग है…औरऔर भी

जो चीज़ खुदा-न-खास्ता अपनी हो गई, उसे हम कभी फेंक नहीं पाते। पुरानी मशीनें, जूते, कपड़े, बच्चों के खिलौने और न जाने क्या-क्या कहीं कोने-अंतरे में सहेजकर रखते हैं। असल में यह मालिकाने की मानसिक ग्रंथि है, मोह है, जिसे निकालना जरूरी है। इसलिए ट्रेडिंग के लिए कोई शेयर खरीदने से पहले तय कर लें कि कहां निकलना है। नहीं तो लेने के बाद वो गले की हड्डी बन जाएगा। अब बाज़ार की दशा-दिशा और ट्रेडिंग टिप्स…औरऔर भी

हमें डिस्काउंट की आदत है। लेकिन शेयर बाज़ार में यह सोच कभी-कभी भारी पड़ सकती है क्योंकि यहां कोई स्टॉक सस्ता क्यों है और महंगा क्यों, इसकी बड़ी स्पष्ट वजहें होती हैं। अच्छा स्टॉक कभी किसी निगाह से छूटता नहीं। लोग उसे लपकने लगते हैं और फ्लोटिंग स्टॉक सीमित होने के कारण खट से शेयर चढ़ जाता है। याद रखें, सस्ती चीजें हमेशा अच्छी नहीं होतीं और अच्छी चीजें कभी सस्ती नहीं होतीं। अब बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी