sin

वेदांत कहता है कि पाप जैसी कोई चीज़ नहीं। हां, गलती ज़रूर होती है और, हमारी सबसे बड़ी गलती है खुद को कमज़ोर, पापी और दीनहीन, दयनीय समझना। यह समझना कि हम इतने गए-गुजरे हैं कि हमसे कुछ हो ही नहीं सकता।और भीऔर भी

पाप कभी स्थाई नहीं होता। उसे अपरिहार्य या नियति मानना गलत है। सामूहिक हालात और व्यक्तिगत विवेक को हमेशा बेहतर, शुद्ध व तेजस्वी बनाया जा सकता है। इसलिए क्षण के स्थायित्व पर नहीं, उसकी गतिशीलता पर यकीन करें।और भीऔर भी