टेक्निकल एनालिसिस या चार्टिंग का मूल मकसद है किसी खास समय तक खरीदने और बेचने वालों के बीच का संतुलन देखकर बाज़ार पर हावी भावना को समझना। लेकिन यह थोड़े वक्त, बहुत हुआ तो महीने या दो महीने के लिए फिट बैठता है। लंबे समय में कंपनी व अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल्स ही शेयरों के भाव तय करते हैं। इसलिए साल दो साल के निवेश पर टेक्निकल का फंदा नही कसना चाहिए। अब देखते हैं गुरु का बाज़ार…औरऔर भी

अगर किसी ने ट्रेडिंग को अच्छी तरह समझ लिया, टेक्निकल एनालिसिस में पारंगत हो गया हो तो ट्रेडिंग की शुरुआत उसे कितनी पूंजी से करनी चाहिए? मेरे एक जाननेवाले हैं जो अड़े हुए हैं कि जब दस लाख नहीं हो जाते, तब तक ट्रेडिंग को हाथ नहीं लगाएंगे। वे यह भी कहते हैं कि उन्हें दिन में ट्रेडिंग से 10,000 कमाने हैं। अगर दिन के 1000-1500 ही कमाने हैं तो बेहतर है कि वे सब्जी-भाजी की दुकानऔरऔर भी

हर अनुभवी ट्रेडर ट्रेंड को फ्रेंड मानता है। लेकिन इस पारंपरिक और प्रचलित सोच के साथ दो समस्याएं हैं। पहली यह कि ट्रेंड जारी रहा तो यकीनन फायदा होता है। पर इसकी मात्रा इतनी सीमित हो सकती है कि ब्रोकरेज़ व दूसरे खर्च काटने के बाद हो सकता है कि ट्रेंड पर किया गया ट्रेड फालतू की मशक्कत बन जाए। दूसरी समस्या यह है कि मान लीजिए कि आपने सौदे को जैसे ही हाथ लगाया, वैसे हीऔरऔर भी

मित्रों! मेरा मकसद न तो आपको टिप्स देना है और न ही आपसे कमाई करना। मेरा पहला मकसद है उन सूचनाओं की खाईं को भरना जो अंग्रेज़ी जाननेवालों को आसानी से मिल जाती हैं, जबकि हिंदी जगत अंधेरे में टटोलता रहता है। यही हाल मराठी और अन्य भारतीय भाषाएं बोलने वालों का है। दूसरा मकसद है अंग्रेज़ी जाननवाले भी जिन जटिलताओं से घबराते हैं, उन्हें सुलझा देना। अब ट्रेडिंग की ऐसी ही कुछ उलझनों को सुलझाने केऔरऔर भी

हम सभी खुद को भीड़ से अलग समझते हैं। लेकिन आफत या अफरातफरी की हालत में भीड़ जैसा ही बर्ताव करते हैं। जब तक हम भीड़-सा बर्ताव करते रहेंगे, तब तक शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग से नहीं कमा सकते। यह कोई दुस्साहसी काम नहीं है जिसमें लीक छोड़कर भीड़ से उलटा चलना पड़ता है। लेकिन यहां भीड़ से ऊपर उठना ज़रूरी है ताकि हम भीड़ की चाल को भांप सके। टेक्निकल एनालिसिस इसमें मददगार है। अब आगे…औरऔर भी

डॉलर का 66.30 रुपए हो जाना सरकार की अदूरदर्शी नीतियों का नतीजा है। इसे संभालने का कोई शॉर्टकट नहीं। समस्या यह है कि भारतीय मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की उत्पादकता घट गई है। दुनिया में भारतीय मालों के पिटने से हमारा व्यापार घाटा 195 अरब डॉलर हो चुका है। सेवा उद्योग और अनिवासी भारतीय देश में 105 अरब डॉलर ला रहे हैं। इस तरह बची 90 अरब डॉलर की कमी कोहराम मचाए हुए है। फिर, कैसे बढ़े शेयर बाज़ार?औरऔर भी

हर दिन बाज़ार से घनेरों सूचनाएं निकलती हैं। इनमें से काम की सूचना निकालना और विश्लेषण करना कठिन है। फिर तमाम संकेतकों में इन्हें बैठा कर किसी नतीजे पर पहुंचना कठिन है। स्टॉक एनालिस्ट बनना भी कठिन है, बशर्ते यह नौकरी कहीं न मिल जाए। लेकिन ट्रेडिंग करना और भी कठिन है। चार्ट बना लिया। पर चार्ट का दाहिना हिस्सा खाली है। इसे भरने का हुनर अनुभव, अध्ययन, अभ्यास व अनुशासन से आता है। बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

इतिहास भले अपने-आप को दोहराता हो। लेकिन कल के आधार पर नहीं तय हो सकता कि आज या कल क्या होगा। टेक्निकल एनालिसिस के साथ यही समस्या है। वो अब तक हो चुकी ट्रेडिंग के आंकड़ों को लेकर भावी गति को बताने का दम भरती है। वो समय से पीछे चलती है। यही वजह है कि शेयर बाज़ार में ऑपरेटर कमाई करते हैं। बाकी ट्रेडर कंगाल होते रहते हैं। हम चलते हैं टेक्निकल एनालिसिस से बराबर आगे…औरऔर भी

चार दिन पहले पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने चार फर्मों – राइट ट्रेड, बुल ट्रेडर, लक्ष्मी ट्रेडर्स और साई ट्रेडर पर बैन लगा दिया। इन फर्मों को सूरत से चलाया जा रहा था और इनके पीछे दो लोग थे – इम्तियाज़ हनीफ खांडा और वाली ममद हबीब घानीवाला। घानीवाला इम्तियाज़ का मामा है। ये लोग अपनी वेबसाइट ‘राइट ट्रेड डॉट इन’ के जरिए और मोबाइल पर एसएमएस भेजकर लोगों को शेयर और कमोडिटी बाज़ार से हरऔरऔर भी

शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग कुछ इंडीकेटरों या टिप्स का करतब नहीं, बल्कि एक कौशल है जिसे हर किसी को अपने अंदाज़ में विकसित करना पड़ता है। हिंदी में इससे जुड़ी किताबें भले ही न हों, पर अंग्रेज़ी में हज़ारों किताबें हैं। पिछले दो शनिवार को मैंने इसी कॉलम में पांच किताबों का लिंक दिया है। यह सेवा सब्सक्राइब न करनेवाले पाठक भी इन्हें देख सकते हैं। ये कुछ चुनिंदा मूलभूत किताबें हैं जिन्हें ट्रेडिंग की तैयारी केऔरऔर भी