अमेरिका का ऋण संकट फिलहाल टल गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और अमेरिका की दोनों प्रमुख पार्टियों – डेमोक्रेट्स व रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं के बीच सरकार की मौजूदा 14.3 लाख करोड़ डॉलर की ऋण सीमा को बढ़ाने पर सहमति हो गई है जिससे वह जरूरी भुगतान कर सकती है। यह भी तय हुआ है कि अमेरिकी सरकार अगले दस सालों में अपने खर्च में 2.4 लाख करोड़ डॉलर की कटौती करेगी। अब इस सहमति कोऔरऔर भी

एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम ने हमें ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया है जहां से गिरावट की गहरी फिसलन का अंदेशा बढ़ गया है। ग्रीस के ऋण संकट को हमने कभी तवज्जो नहीं दी। लेकिन अमेरिका में अगर ऋण अदायगी में चूक हुई तो अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज उसे डाउनग्रेड कर सकती है। इससे अमेरिकी शेयर बाजार में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है और यकीनन इससे भारतीय शेयर बाजार का सारा मिजाज भीऔरऔर भी

निफ्टी और सेंसेक्स दोनों लगभग सपाट। लेकिन बाजार में छाई निराशा का कोई अंत नहीं है। ट्रेडर हलकान हैं। निवेशक अपनी गाढ़ी कमाई को लेकर परेशान हैं। वे तमाम ऐसी कंपनियों में कसकर फंस चुके हैं, जिनके शेयर अच्छे फंडामेंटल्स के बावजूद उनकी खरीद के भाव से नीचे ही नीचे चल रहे हैं। दरअसल, बाजार अपना मूल चरित्र खो चुका है और उस पर सट्टेबाजी और जोड़तोड़ हावी हो गई है। हालत यह है कि आज बोगसऔरऔर भी

अमेरिका के ऋण-संकट ने पूरी दुनिया के बाजारों की हालत पटरा कर दी है तो भारतीय बाजार कैसे सलामत बच सकता था। निफ्टी एक फीसदी से ज्यादा गिरकर 5500 के नीचे पहुंच गया। फिर भी मुझे लगता है कि अपने यहां असली तकलीफ रोल्स की है। चूंकि यह फिजिकल सेटलमेंट है नहीं, तो ट्रेडरों के पास कैश का अंतर भरने के अलावा कोई चारा नहीं है। यह हमारे बाजार में आई तीखी गिरावट का मूल कारण हैऔरऔर भी