दुनिया में कृषियोग्य जमीन के मामले में भारत अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर है। अमेरिका के पास 1627.51 लाख हेक्टेयर खेतिहर जमीन है। चीन का कुल क्षेत्रफल हमारे तीन गुने से ज्यादा है। लेकिन हमारे पास खेती लायक जमीन 1579.23 लाख हेक्टेयर है, जबकि चीन के पास 1099.99 लाख हेक्टेयर। फिर भी चीन का अनाज उत्पादन हमसे कई गुना ज्यादा है। कारण, चीन की तुलना में हमारे यहां गेहूं की उत्पादकता 55%, धान की 51%, तिलहनऔरऔर भी

देश में दलहन की घरेलू मांग और पूर्ति के अंतर को पाटने के लिए अभी लम्बे प्रयास की जरूरत है और इस साल हमें दालों का आयात करना पड़ सकता है। यह कहना है केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का। राजधानी दिल्ली में शुक्रवार को कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के निदेशकों के सालाना सम्मेलन के दौरान पवार ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि, “अनाज उत्पादन हो या फल-सब्जी, हमारा प्रदर्शनऔरऔर भी

खाद्य मुद्रास्फीति लगातार तीसरे हफ्ते साल भर पहले की तुलना में बढ़ने के बजाय घट गई है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की तरफ से हर गुरुवार की तरह इस गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक 7 जनवरी 2012 को समाप्त सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति शून्य से नीचे 0.42 फीसदी रही। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति की दर इससे पिछले हफ्ते शून्य से नीचे 2.90 फीसदी और उससे पिछले हफ्ते शून्य से नीचे 3.36 फीसदी थी।औरऔर भी

कृषि मंत्रालय की तरफ से दी गई ताजा जानकारी के मुताबिक अभी तक रबी सीजन में कुल 290.67 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुआई कर दी गई है। पिछले साल इसी तिथि तक कुल 288.38 लाख क्षेत्र में गेहूं की बुआई की गई थी। पिछले साल की तुलना में इस साल यह कुल 2.29 लाख हेक्‍टेयर अधिक है। मध्‍यप्रदेश के 4.79 लाख हेक्‍टेयर, राजस्‍थान के 3.11 लाख हेक्‍टेयर, झारखंड के 0.58 लाख हेक्‍टेयर और छत्‍तीसगढ़ केऔरऔर भी

इस बार देश में दहलन और तिलहन कम बोया गया है। अभी तक दालों की बुआई 140.66 लाख हेक्‍टेयर में हुई है, जबकि पिछले वर्ष यह रकबा 142.38 लाख हेक्‍टेयर था। चने की बुआई पिछले वर्ष की इसी अवधि में 92.77 लाख हेक्‍टेयर की तुलना में 87.22 लाख हेक्‍टेयर में की गई है। तिलहन के मामले में पिछले वर्ष के 85.5 लाख हेक्‍टेयर की तुलना में अब तक 80.96 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में बुआई की जाने कीऔरऔर भी

इस समय जो-जो चीजें किसानों के पास बहुतायत में हैं, उन सभी की कीमत में भारी गिरावट के कारण खाद्य मुद्रास्फीति की दर शून्य से नीचे पहुंच गई है। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार 24 दिसंबर 2011 को समाप्त सप्ताह में थोक मूल्यों पर आधारिक खाद्य मुद्रास्फीति की दर (-) 3.36 फीसदी रही है। लेकिन किसानों के पास जो चीजें नहीं हैं, मसलन दूध, फल, दाल व मांस-मछली व अंडे, उनऔरऔर भी

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने 2012-13 में 2011-12 की रबी फसलों की खरीद के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) को मंगलवार को मंज़ूरी दे दी। गेहूं का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 1285 रूपए प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह पिछले वर्ष के न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य की तुलना में 165 रूपए प्रति क्विंटल ज्यादा है। इस तरह गेहूं का समर्थन मूल्य 14.7 जौ का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 200 रूपए प्रति क्विंटल या 25.6 फीसदी बढ़ाकर 980 रूपएऔरऔर भी

सरकारी खरीद एजेंसियों के पास 1 अगस्‍त 2011 तक चावल व गेहूं का कुल भंडार 611.46 लाख टन का था। इसमें से 252.71 लाख टन चावल और 358.75 लाख टन गेहूं है। यह सूचना खाद्य व उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की तरफ से दी गई है। मंत्रालय के अनुसार, 1 अगस्‍त 2011 को चावल की खरीद पिछले खरीफ सीजन के 301.60 लाख टन के मुकाबले 325.99 लाख टन रही है। 2011-12 की रबी फसल के लिए गेहूंऔरऔर भी

खाद्य मुद्रास्फीति में एक अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के दौरान मामूली गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन प्रमुख खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी के कारण यह अब भी 9.32 फीसदी के ऊंचे स्तर पर है। थोक मूल्यों पर निकाली जानेवाली इस खाद्य मुद्रास्फीति की दर 24 सितंबर को खत्म सप्ताह में 9.41 फीसदी पर थी। वैसे, हमारे नियामक इस बात पर संतोष जताते हैं कि पिछले साल के समान सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति 17.14 फीसदी थी।औरऔर भी

खाद्य मुद्रास्फीति 10 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान गिरकर 8.84 फीसदी पर आ गई। यह हफ्ते भर पहले 9.47 फीसदी दी। लेकिन आंकड़ों में इस कमी से आम आदमी को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि मुख्य जिंसों की कीमतें अब भी ऊंची बनी हुई हैं। सरकार द्वारा गुरुवार को जारी थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति के आंकड़ों के मुताबिक गेहूं को छोड़कर ज्यादातर जिंसों की कीमतें एक साल पहले की तुलना में महंगीऔरऔर भी